Monday, March 9, 2015

Bharat ki Raniya




कई सालों तक हम मानते रहे की रज़िया सुलतान से पहले भारत में कोई रानी राज पाट नहीं चलाती थी | क्या है की इतिहास की जो क़िताबें स्कूल में पढाई जाती थी उसमे कई कई साल गायब थे भारत के इतिहास से | सिर्फ साल गायब होते तो कोई बहुत अंतर पड़ता ऐसा नहीं है, कई कई इलाक़े भी गायब थे | अब जैसे इतिहास की किताबें उलटेंगे तो कश्मीर का जिक्र शायद ही कहीं मिले | बंगाल के आगे यानि की जिसे आज नार्थ ईस्ट कहते हैं उसका जिक्र भी नहीं आता |

कश्मीर में दसवीं शताब्दी में एक रानी थी दिद्दा, ये बड़ी ही दुष्ट रानी थी | अपने बेटे के संरक्षक के रूप में रानी बनी थी और इस से पहले की बेटा राज काज सँभालने लायक हो उसे मरवा देती थी, फिर उस से छोटे बेटे के संरक्षक के तौर पर रानी बन जाती थी | इस तरह उसने अपने कई बेटों को मरवाया |

एक भली सी रानी थी वारंगल में, काकतीय वंश की रुद्रम्मा (1259-1288), वो अपने क़ानूनी दस्तावेजों के लिए विख्यात हैं | राज्य के सारे दस्तावेज वो ऐसी भाषा में लिखवाती थीं जो पुल्लिंग हों | उनके शाषण काल के दस्तावेज देखकर रानी के जारी किये दस्तावेज हैं ये पता करना थोड़ा मुश्किल होता है |

गृह्वर्मन जो की कान्यकुब्ज के आखरी मुखारी वंश के राजा थे उनकी विधवा पत्नी राज्यश्री भी राज काज देखती थीं | बाद में उनके है हर्ष राजा हुए | अक्कादेवी जो की चालुक्य राजा जयसिम्हा द्वित्तीय (1015 – 1042) की बहन थी वो भी राज पाट देखती थीं | अपने भाई के राज्य काल में ही वो एक छोटे राज्य की रानी थी | कुन्दावी प्रसिद्ध चोल राजा राजराजा प्रथम की बड़ी बहन थी | वो भी अपने भाई के राज्य में ही एक छोटे राज्य की रानी थी |

अक्कादेवी ने कई लड़ाइयों में भाग लिया था, किलों के घेराव का भी वो नेतृत्व करती थी | होयसल राजा विरबल्लाला द्वितीय (1173 – 1220) की रानी थी उमादेवी, वो दो बार अपने अधीनस्थ राजाओं के विद्रोह करने पर उनके ख़िलाफ़ सैन्य अभियानों के नेतृत्व में थी |

ये सारे पन्ने हमारी किताबों से गायब हो गए हैं | शुक्र है की रानी चेनम्मा और रानी लक्ष्मीबाई ज्यादा पुराने समय की नहीं हैं | लोक कथाओं ने इन्हें भारत के कल्पित इतिहास में विलुप्त होने से बचा लिया |

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