Monday, January 12, 2015

हमारे धर्मनिरपेक्ष देश में "धर्म के आधार" पर अलग-अलग कानून क्यों ?

एक "हिन्दू लड़की" 15 साल की उम्र पूरा करने के बाद "निकाह" कर सकती है | "सुप्रीम कोर्ट" से लेकर भारत के "सभी कोर्ट" इसको मानते है, बस शर्त ये है कि लड़की "इस्लाम कबूल" कर ले | क्योंकि "मुस्लिमो" के लिए देश में उनके लिए "अलग कानून" है | ऐसे "दोगले कानून" के वजह से घर से भागी हुई हिन्दू लड़की मुस्लिम बन जाती है | क्योंकि हिंदु मैरिज एक्ट के अनुसार लडकी के "विवाह" के लिये 18 वर्ष का होना जरुरी होता है | जबकि "मुस्लिमो के निकाह" के लिये 15 वर्ष ही चाहिये | जिस लडकी की उम्र 15 से 18 वर्ष के बीच है उसकी शादी हिंदु मैरेज एक्ट के हिसाब से गैर कानूनी है, इसलिये शादी को कानूनी मान्यता प्राप्त करने के लिये "इस्लाम कबूल" करना पडता है | फिर विवाह को निकाह का नाम दिया जायेगा | क्या यह कानून भी धर्म परिवर्तन को बढावा देना वाला नहीं है ?
इस पर कभी कोई चर्चा क्यों नही करता | अगर हिंदु मैरिज एक्ट मे भी लडकी के विवाह के लिये निम्नतम उम्र 15 वर्ष कर दे या फिर कोई ऐसा करने की मांग करे. . तो बवाल खडा हो जायेगा। महिला आयोग, मानवाधिकार, बच्चो के अधिकार और पता नही कितने आयोग और मीडिया वाले उछलने लगेंगे खूब चर्चा और बहस होगी, पर आज वो सभी आयोग और मीडिया वाले चुप बैठे हैं |
कोई बतायेगा मुझे की धर्मनिरपेक्ष देश मे "धर्म के आधार" पर अलग- अलग कानून कैसे बन सकते हैं ?

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