Monday, January 12, 2015

Shambulingesvara Temple, Kundgol, Karnataka

The temple is Ekakutachala, meaning has one Garbhagudi. Shambulingesvara Gudi is a 11th century temple built by the Kadambas and then later renovated by Chalukyas
This east facing temple has 3 entrances; east, south and north. 64 lathe turned & polished pillars with rich designs hold up the temple's roof. No two pillars are same in decoration ...which is a norm of ancient temple builders.


प्राचीन वैदिक भारत ने विश्व को क्या दिया

1. जब कई संस्कृतिया 5000 साल पहले ही घुमंतू जंगली और खानाबदोश थी, तब भारतीय सिंधु घाटी (सिंधुघाटी सभ्यता) में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की |

2. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का अध्ययन प्राचीन भारत में ही आरंभ हुआ था |

3. ‘स्थान मूल्य प्रणाली’ और ‘दशमलव प्रणाली’ का विकास भारत में 100 बी सी में हुआ था |

4. शतरंज की खोज भारत में की गई थी |

5. विश्व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर है | इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बनें हैं यह भव्य मंदिर राजा राज चोल के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 ए डी और 1009 ए डी के दौरान) निर्मित किया गया था |

6. सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्दी में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे | इस.खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्व
करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे | इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था | आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्छे काम लोगों को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम
दोबारा जन्म के चक्र में डाल देते हैं |

7. विश्व का सबसे प्रथम विश्वविद्यालय 700.बी सी में तक्षशिला में स्थापित किया गया था | इसमें 60 से अधिक विषयों में 10,500 से अधिक छात्र दुनियाभर से आकर अध्ययन करते थे | नालंदा विश्वविद्यालय चौथी शताब्दी में स्थापित किया गया था जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है |

8. आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्सा शाखा है | शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक ने 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था |

9. नौवहन की कला और नौवहन का जन्म 6000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था | दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्कृत शब्द नव गति से उत्पन्न हुआ है | शब्द नौ सेना भी संस्कृत शब्द नोउ से हुआ |

10. भास्कराचार्य ने खगोल शास्त्र के कई सौ साल पहले पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है |

11. भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा ‘पाई’ का मूल्य ज्ञात किया गया था और उन्होंने जिस संकल्पना को समझाया उसे पाइथागोरस का प्रमेय करते हैं | उन्होंने इसकी खोज छठवीं शताब्दी में की, जो यूरोपीय गणितज्ञों से काफी पहले की गई थी |

12. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का उद्भव भी भारत में हुआ था | चतुष्पद समीकरण का उपयोग 11वीं शताब्दी में श्री धराचार्य द्वारा किया गया था | ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसे बड़ी संख्या 106 थी, जबकि हिन्दुओं ने 10*53 जितने बड़े अंकों का उपयोग (अर्थात 10 की घात 53), के साथ विशिष्ट नाम 5000 बीसी के दौरान किया | आज भी उपयोग की जाने वाली सबसे बड़ी संख्या टेरा: 10*12 (10 की घात12) है |

13. सुश्रुत को शल्य चिकित्सा (surgery) का जनक माना जाता है | लगभग 2600 वर्ष पहले सुश्रुत और उनके सहयोगियों ने मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों को लगना, शल्य क्रिया द्वारा प्रसव, अस्थिभंग जोड़ना, मूत्राशय की पथरी, प्लास्टिक सर्जरी और मस्तिष्क की शल्य क्रियाएं आदि की |

14. निश्चेतक का उपयोग भारतीय प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में भली भांति ज्ञात था |
शारीरिकी, भ्रूण विज्ञान, पाचन, चयापचय, शरीर क्रिया विज्ञान, इटियोलॉजी, आनुवांशिकी और प्रतिरक्षा विज्ञान आदि विषय भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पाए जाते हैं |

15. युद्ध कलाओं का विकास सबसे पहले भारत में किया गया और ये बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा पूरे एशिया में फैलाई गई |

16. योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यहां 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद हैं |

अब यहाँ एक पोस्ट में शून्य, बाइनरी संख्या, परमाणु बम का आईडिया, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का आईडिया,विमान शास्त्र, योग विज्ञान,वास्तुशास्त्र ,खगोलविज्ञान,व्यंजन पाक कला,नृत्य कला,संगीत कला जैसी सैकड़ो अमूल्य पद्धतियो पर लिखना संभव नही है | इसलिए देखा जाए तो वास्तव मे सनातन धर्म और प्राचीन भारतीय संस्कृति एक ऐसा महासागर है, जिसमे जितनी बार डुबकी लगाई हर बार एक नया रत्न बाहर निकलता है |


मुस्लिम काल में भी आर्य हिन्दू राजाओं द्वारा प्रत्येक नारी को उसी प्रकार से सम्मान दिया जाता था जैसे कोई भी व्यक्ति अपनी माँ का सम्मान करता हैं।

भारत देश की महान वैदिक सभ्यता में नारी को पूजनीय होने के साथ साथ “माता” के पवित्र उद्बोधन से संबोधित किया गया हैं।

मुस्लिम काल में भी आर्य हिन्दू राजाओं द्वारा प्रत्येक नारी को उसी प्रकार से सम्मान दिया जाता था जैसे कोई भी व्यक्ति अपनी माँ का सम्मान करता हैं।

यह गौरव और मर्यादा उस कोटि के हैं ,जो की संसार के केवल सभ्य और विकसित जातियों में ही मिलते हैं।

महाराणा प्रताप के मुगलों के संघर्ष के समय स्वयं राणा के पुत्र अमर सिंह ने विरोधी अब्दुरहीम खानखाना के परिवार की औरतों को बंदी बना कर राणा के समक्ष पेश किया तो राणा ने क्रोध में आकर अपने बेटे को हुकुम दिया की तुरंत उन माताओं और बहनों को पूरे सम्मान के साथ अब्दुरहीम खानखाना के शिविर में छोड़ कर आये एवं भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की प्रतिज्ञा करे।

ध्यान रहे महाराणा ने यह आदर्श उस काल में स्थापित किया था जब मुग़ल अबोध राजपूत राजकुमारियों के डोले के डोले से अपने हरम भरते जाते थे। बड़े बड़े राजपूत घरानों की बेटियाँ मुगलिया हरम के सात पर्दों के भीतर जीवन भर के लिए कैद कर दी जाती थी। महाराणा चाहते तो उनके साथ भी ऐसा ही कर सकते थे पर नहीं उनका स्वाभिमान ऐसी इज़ाज़त कभी नहीं देता था।

औरंगजेब के राज में हिन्दुओं पर अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। हिन्दू या काफ़िर होना तो पाप ही हो गया था। धर्मान्ध औरंगजेब के अत्याचार से स्वयं उसके बाप और भाई तक न बच सके , साधारण हिन्दू जनता की स्वयं पाठक कल्पना कर सकते हैं। औरंगजेब की स्वयं अपने बेटे अकबर से अनबन हो गयी थी। इसी कारण उसका बेटा आगरे के किले को छोड़कर औरंगजेब के प्रखर विरोधी राजपूतों से जा मिला था जिनका नेतृत्व वीर दुर्गादास राठोड़ कर रहे थे।

कहाँ राजसी ठाठ बाठ में किलो की शीतल छाया में पला बढ़ा अकबर , कहाँ राजस्थान की भस्म करने वाली तपती हुई धुल भरी गर्मियाँ। शीघ्र सफलता न मिलते देख संघर्ष न करने के आदि अकबर एक बार राजपूतों का शिविर छोड़ कर भाग निकला। पीछे से अपने बच्चों अर्थात औरंगजेब के पोता-पोतियों को राजपूतों के शिविर में ही छोड़ गया। जब औरंगजेब को इस बात का पता चला तो उसे अपने पोते पोतियों की चिन्ता हुई क्यूंकि वह जैसा व्यवहार औरों के बच्चों के साथ करता था कहीं वैसा ही व्यवहार उसके बच्चों के साथ न हो जाये। परन्तु वीर दुर्गा दास राठोड़ एवं औरंगजेब में भारी अंतर था। दुर्गादास की रगो में आर्य जाति का लहू बहता था। दुर्गादास ने प्राचीन आर्य मर्यादा का पालन करते हुए ससम्मान औरंगजेब के पोता पोती को वापिस औरंगजेब के पास भेज दिया जिन्हें पाकर औरंगजेब अत्यंत प्रसन्न हुआ। वीर दुर्गादास राठोड़ ने इतिहास में अपना नाम अपने आर्य व्यवहार से स्वर्णिम शब्दों में लिखवा लिया।

वीर शिवाजी महाराज का सम्पूर्ण जीवन आर्य जाति की सेवा,रक्षा, मंदिरों के उद्धार, गौ माता के कल्याण एवं एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के रूप में गुजरा जिन्हें पढ़कर प्राचीन आर्य राजाओं के महान आदर्शों का पुन: स्मरण हो जाता हैं। जीवन भर उनका संघर्ष कभी बीजापुर से, कभी मुगलों से चलता रहा। किसी भी युद्ध को जितने के बाद शिवाजी के सरदार उन्हें नजराने के रूप में उपहार पेश करते थे। एक बार उनके एक सरदार ने कल्याण के मुस्लिम सूबेदार की अति सुन्दर बीवी शिवाजी के सम्मुख पेश की। उसको देखते ही शिवाजी महाराज अत्यंत क्रोधित हो गए और उस सरदार को तत्काल यह हुक्म दिया की उस महिला को ससम्मान वापिस अपने घर छोड़ आये। अत्यंत विनम्र भाव से शिवाजी उस महिला से बोले ” माता आप कितनी सुन्दर हैं , मैं भी आपका पुत्र होता तो इतना ही सुन्दर होता। अपने सैनिक द्वारा की गई गलती के लिए मैं आपसे माफी मांगता हूँ”। यह कहकर शिवाजी ने तत्काल आदेश दिया की जो भी सैनिक या सरदार जो किसी भी ऊँचे पद पर होगा अगर शत्रु की स्त्री को हाथ लगायेगा तो उसका अंग छेदन कर दिया जायेगा।

कहाँ औरंगजेब की सेना के सिपाही जिनके हाथ अगर कोई हिन्दू लड़की लग जाती या तो उसे या तो अपने हरम में गुलाम बना कर रख लेते थे अथवा उसे खुले आम गुलाम बाज़ार में बेच देते थे और कहाँ वीर शिवाजी का यह पवित्र आर्य आदर्श।

इतिहास में शिवाजी की यह नैतिकता स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई हैं।

इन ऐतिहासिक प्रसंगों को पढ़ कर पाठक स्वयं यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं की महानता और आर्य मर्यादा व्यक्ति के विचार और व्यवहार से होती हैं।


हमें किन 10 लोगों के यहां भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए

हमारे समाज में एक परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है कि लोग एक-दूसरे के घर पर भोजन करने जाते हैं | कई बार दूसरे लोग हमें खाने की चीजें देते हैं | वैसे तो यह एक सामान्य सी बात है, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि किन लोगों के यहां हमें भोजन नहीं करना चाहिए | गरुड़ पुराण के आचार कांड में बताया गया है कि हमें किन 10 लोगों के यहां भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए | यदि हम इन लोगों के द्वारा दी गई खाने की चीज खाते हैं या इनके घर भोजन करते हैं तो इससे हमारे पापों में वृद्धि होती है | ये 10 लोग कौन-कौन हैं ? और इनके घर पर भोजन क्यों नहीं करना चाहिए ?

1-कोई चोर या अपराधी :-कोई व्यक्ति चोर है, न्यायालय में उसका अपराधी सिद्ध हो गया हो तो उसके घर का भोजन नहीं करना चाहिए | गरुड़ पुराण के अनुसार चोर के यहां का भोजन करने पर उसके पापों का असर हमारे जीवन पर भी हो सकता है |

2-चरित्रहीन स्त्री :-इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चरित्रहीन स्त्री के हाथ से बना हुआ या उसके घर पर भोजन नहीं करना चाहिए | यहां चरित्रहीन स्त्री का अर्थ यह है कि जो स्त्री स्वेच्छा से पूरी तरह अधार्मिक आचरण करती है | गरुड़ पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति ऐसी स्त्री के यहां भोजन करता है, वह भी उसके पापों का फल प्राप्त करता है |

3-सूदखोर :-वैसे तो आज के समय में काफी लोग ब्याज पर दूसरों को पैसा देते हैं, लेकिन जो लोग दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए अनुचित रूप से अत्यधिक ब्याज प्राप्त करते हैं, गरुड़ पुराण के अनुसार उनके घर पर भी भोजन नहीं करना चाहिए | किसी भी परिस्थिति में दूसरों की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाना पाप माना गया है | गलत ढंग से कमाया गया धन, अशुभ फल ही देता है |

4-रोगी व्यक्ति :-यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, कोई व्यक्ति छूत के रोग का मरीज है तो उसके घर भी भोजन नहीं करना चाहिए | ऐसे व्यक्ति के यहां भोजन करने पर हम भी उस बीमारी की गिरफ्त में आ सकते हैं | लंबे समय से रोगी इंसान के घर के वातावरण में भी बीमारियों के कीटाणु हो सकते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं |

5-अत्यधिक क्रोधी व्यक्ति :-क्रोध इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है | अक्सर क्रोध के आवेश में व्यक्ति अच्छे और बुरे का फर्क भूल जाता है | इसी कारण व्यक्ति को हानि भी उठानी पड़ती है | जो लोग हमेशा ही क्रोधित रहते हैं, उनके यहां भी भोजन नहीं करना चाहिए | यदि हम उनके यहां भोजन करेंगे तो उनके क्रोध के गुण हमारे अंदर भी प्रवेश कर सकते हैं |

6-नपुंसक या किन्नर :-किन्नरों को दान देने का विशेष विधान बताया गया है | ऐसा माना जाता है कि इन्हें दान देने पर हमें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है | गरुड़ पुराण में बताया गया है कि इन्हें दान देना चाहिए, लेकिन इनके यहां भोजन नहीं करना चाहिए | किन्नर कई प्रकार के लोगों से दान में धन प्राप्त करते हैं। इन्हें दान देने वालों में अच्छे-बुरे, दोनों प्रकार के लोग होते हैं |

7-निर्दयी व्यक्ति :-यदि कोई व्यक्ति निर्दयी है, दूसरों के प्रति मानवीय भाव नहीं रखता है, सभी को कष्ट देते रहता है तो उसके घर का भी भोजन नहीं खाना चाहिए | ऐसे लोगों द्वारा अर्जित किए गए धन से बना खाना हमारा स्वभाव भी वैसा ही बना सकता है | हम भी निर्दयी बन सकते हैं | जैसा खाना हम खाते हैं, हमारी सोच और विचार भी वैसे ही बनते हैं |

8-निर्दयी राजा :- यदि कोई राजा निर्दयी है और अपनी प्रजा का ध्यान न रखते हुए सभी को कष्ट देता है तो उसके यहां का भोजन नहीं करना चाहिए | राजा का कर्तव्य है कि प्रजा का ध्यान रखें और अपने अधीन रहने वाले लोगों की आवश्यकताओं को पूरी करें | जो राजा इस बात का ध्यान न रखते हुए सभी को सताता है, उसके यहां का भोजन नहीं खाना चाहिए |

9-चुगलखोर व्यक्ति :-
जिन लोगों की आदत दूसरों की चुगली करने की होती है, उनके यहां या उनके द्वारा दिए गए खाने को भी ग्रहण नहीं करना चाहिए | चुगली करना बुरी आदत है | चुगली करने वाले लोग दूसरों को परेशानियों फंसा देते हैं और स्वयं आनंद उठाते हैं | इस काम को भी पाप की श्रेणी में रखा गया है | अत: ऐसे लोगों के यहां भोजन करने से बचना चाहिए |

10-नशीली चीजें बेचने वाले :-नशा करना भी पाप की श्रेणी में ही आता है और जो लोग नशीली चीजों का व्यापार करते हैं, गरुड़ पुराण में उनका यहां भोजन करना वर्जित किया गया है | नशे के कारण कई लोगों के घर बर्बाद हो जाते हैं | इसका दोष नशा बेचने वालों को भी लगता है | ऐसे लोगों के यहां भोजन करने पर उनके पाप का असर हमारे जीवन पर भी होता है |

आज के युग एवं संस्कृति को देखते हुए, ऐसे लोगो भले ही उनसे हमारा करीबी नाता हो, उनके द्वारा दिए गए भोजन के निमंत्रण से दूर रहने में ही मन एवं विचारों की शुद्धता है |


हराम और हलाल का कमाल !

इस संक्षिप्त से लेख में कुरान ,हदीसों ,फतवों ,और समाचारों में प्रकाशित खबरों से चुन कर एक दर्जन ऐसे मुद्दे दिए जा रहे हैं , जिनको पढ़ कर आप समझ जय्र्गे कि इस्लाम के अनुसार हराम क्या है ,और हलाल क्या है
1 -अल्लाह का नाम लिए बिना जानवर को मारना हराम है .
लेकिन जिहाद के नाम से हजारों इंसानों का क़त्ल करना हलाल है .

2-यहूदियों ,ईसाइयों से दोस्ती करना हराम है .
लेकिन यहूदियों ,ईसाईयों का क़त्ल करना हलाल है .
3-टी वी और सिनेमा देखना हराम है .
लेकिन सार्वजनिक रूप से औरतों को पत्थर मार हत्या करते हुए देखना हलाल है .
4-किसी औरत को बेपर्दा देखना हराम है .
लेकिन किसी गुलाम औरत को बेचते समय नंगा करके देखना हलाल है .
5-शराब का धंदा करना हराम है .
लेकिन औरतों ,बच्चों को गुलाम बना कर बेचने का धंदा हलाल है .
6-संगीत सुनना हराम है .
लेकिन जिहाद के कारण मारे गए निर्दोष लोगों के घर वालों की चीख पुकार सुनना हलाल है .
7घोड़ों की दौड़ पर दाव लगाना हराम है .
लेकिन काफिरों के घोड़े चुरा कर बेचना हलाल है
8-औरतों को एक से अधिक पति रखना हराम है .
लेकिन मर्दों लिए एक से अधिक पत्नियाँ रखना हलाल है .
9-चार से अधिक औरतें रखना हराम है .
लेकिन अपने हरम में सैकड़ों रखेंलें रखना हलाल है .
10-किसी मुस्लिम का दिल दुखाना हराम है .
लेकिन किसी गैर मुस्लिम सर कटना हलाल है .
11-औरतों के साथ व्यभिचार करना हराम है .
लेकिन जिहाद में पकड़ी गयी औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार करना हलाल है .
12-जब किसी औरत की पत्थर मार कर हत्या की जारही हो ,तो उसे बचाना हराम है .
जब उसी अपराध के लिए औरत को जिन्दा जलाया जा रहा हो ,तमाशा देखना हलाल है .
इन थोड़े से मुद्दों को ध्यान से पढ़ने से उन लोगों की आँखें खुल जानी चाहिए

The Norse God Odin was The Original Santa Claus

Odin is a major god in Germanic mythology, especially in Norse mythology.Odin has many sons, the most famous of whom is the thunder god Thor
According to Pagan myths, Odin was the leader of the Wild Hunt every Yule –the equivalent of Christmas for the Germanic Pagan Tribes- and he would ride his eight-legged horse, Sleipnir around the whole time. Sleipnir could cover long distances in a very short period of time, just like Santa’s sleigh and reindeer. According to the same traditions, children would fill their boots with carrots, straw and sugar, and place them near the chimney for Odin’s flying horse to eat while resting. Odin would then return the favor and reward those children for their kindness by leaving gifts, toys, and candies in the boots. Sound familiar ?



Christianity ….One Christ, One Bible Religion

But the Latin Catholic will not enter Syrian Catholic Church.
These two will not enter Marthoma Church .
These three will not enter Pentecost Church .
These four will not enter Salvation Army Church.
These five will no enter Seventh Day Adventist Church .
These six will not enter Orthodox Church.
These seven will not enter Jacobite church.

Like this there are 146 castes in Kerala alone for Christianity,
each will never share their churches for fellow Christians!
How shameful..! One Christ, One Bible, One Jehova???


चमकौर का युद्ध

ऐसा युद्ध ना कभी किसी ने पढ़ा होगा ना ही सोचा होगा, जिसमे 10 लाख की सेना का सामना महज 42 लोगों के साथ हुआ था और विजय किसकी होती है उन 42 वीरों की |
यह युद्ध 'चमकौर युद्ध' (Battle of Chamkaur) के नाम से भी जाना जाता है जो की मुग़ल योद्धा वज़ीर खान की अगवाई में 10 लाख की सेना का सामना सिर्फ 42 सिखों के सामने हुआ जो की गुरु गोबिंद सिंह जी की अगवाई में तैयार हुए थे | परिणाम यह निकलता है की उन 42 शूरवीर की जीत होती है जो की मुग़ल हुकूमत की नीव जो की बाबर ने रखी थी | उसे जड़ से उखाड़ दिया और भारत को स्वतंत्र भारत का दर्ज़ा दिया | औरंगज़ेब ने भी उस समय गुरु गोबिंद सिंह जी के आगे घुटने टेके और मुग़ल राज का अंत हुआ भारत से |
तभी औरंगेब ने एक प्रश्न किया गुरु गोबिंद सिंह जी के सामने की ! "यह कैसी सेना तैयार की आपने जिसने 10 लाख की सेना को उखाड़ फेका ?" गुरु गोबिंद सिंह जी ने उत्तर दिया :-
चिड़ियों से मै बाज लडाऊ गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ.
सवा लाख से एक लडाऊ तभी गोबिंद सिंह नाम कहउँ,
गुरु गोबिंद सिंह जी ने जो कहा वो किया, जिन्हे आज हर कोई शीश झुकता है | यह है हमारे भारत की अनमोल विरासत जिसे हमने कभी पढ़ा ही नहीं |


भारत का स्वर्णिम अतीत - "जंतर मंतर"

जंतर मंतर का निर्माण राजपूत राजा जय सिंह "द्वितीय" ने (1699-1744) में करवाया था। यह संरचना प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की घोतक है।
जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। जिनमे राजपूतों द्वारा उत्पादित कलाओं के रूप में प्रसिद्द सुन्दर चित्र और विशिष्ट शैली को दर्शाया गया है। दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है।
मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से समय और ग्रहों की
स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है।राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।
राजा जयसिंह द्वितीय बहुत छोटी आयु से गणित में बहुत ही अधिक रूचि रखते थे। उनकी औपचारिक पढ़ाई ११ वर्ष की आयु में छूट गयी क्योंकि उनकी पिताजी की मृत्यु के बाद उन्हें ही राजगद्दी संभालनी पड़ी थी। २५जनवरी, १७०० में गद्दी संभालने के बाद भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोडा। उन्होंने बहुत खगोल विज्ञानं और ज्योतिष का भी गहरा अध्ययन किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत से खगोल विज्ञान से सम्बंधित यंत्र एवम पुस्तकें भी एकत्र कीं। उन्होंने प्रमुख खगोलशास्त्रियों को विचार हेतु एक जगह एकत्र भी किया। हिन्दू , और यूरोपीय खगोलशास्त्री सभी ने उनके इस महान कार्य में अपना बराबर योगदान दिया।
अपने शासन काल में सन् १७२७ में,उन्होंने एक दल खगोलशास्त्र से सम्बंधित और जानकारियां और तथ्य तलाशने के लिए भारत से यूरोप भेजा था। वह दल कुछ किताबें,दस्तावेज,और यंत्र ही ले कर लौटा।
जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र,नाड़ी वलय यंत्र,दिगंश यंत्र,भित्ति यंत्र,मिस्र यंत्र,आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है।
जो खगोल यंत्र राजा जयसिंह द्वारा बनवाये गए थ, उनकी सूची इस प्रकार से है:
1- सम्राट यन्त्र
2- सस्थाम्सा
3- दक्सिनोत्तारा भित्ति यंत्र
4- जय प्रकासा और कपाला
5- नदिवालय
6- दिगाम्सा यंत्र
7- राम यंत्र
8- रसिवालाया
राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पं जगन्नाथ ने इसी विषय पर ‘यंत्र प्रकार’ तथा ‘सम्राट सिद्धांत’ नामक ग्रंथ लिखे।५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में यह वेधशालाएं बाद में बनने वाले तारामंडलों के लिए प्रेरणा और जानकारी का स्त्रोत रही हैं। हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर में स्थापित रामयंत्र के जरिए प्रमुख खगोलविद द्वारा विज्ञान दिवस पर आसमान के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र की स्थिति नापी गयी थी। इस अध्ययन में नेहरू तारामंडल के खगोलविदों के अलावा एमेच्योर एस्ट्रोनामर्स एसोसिएशन और गैर सरकारी संगठन स्पेस के सदस्य भी शामिल थे।


कैसे नष्ट हुई बामियान की बुध प्रतिमाए

अफ़गानिस्तान के बामियान इलाके में गौतम बुद्ध की दो विशाल प्रतिमाएँ हुआ करती थीं। इनमें से बड़ी प्रतिमा की ऊँचाई 55 मीटर और छोटी की ऊँचाई 37 मीटर थी। बड़ी प्रतिमा में बुद्ध वैरोकना मुद्रा व छोटी प्रतिमा में बुद्ध साक्यमुनी मुद्रा में खड़े दिखते थे। यह दोनों विश्व में बुद्ध की खड़ी मुद्रा में बनी सबसे विशाल प्रतिमाएँ थीं –जिन्हें बामियान घाटी में एक पहाड़ी को काटकर बनाया गया था।
तालिबान के पागलपन के कारण आज हमें इन प्रतिमाओं के बारे में भूतकाल का प्रयोग करते हुए बात करनी पड़ती है।
ऐसा माना जाता है कि यह प्रतिमाएँ कुषाणों द्वारा स्थानीय बौद्ध भिक्षुओं के मार्गदर्शन में बनाई गईं थीं। छोटी वाली प्रतिमा सन 507 में और बड़ी वाली सन 554 में निर्मित की गईं। यूनेस्को ने इन्हें विश्व धरोहर भी घोषित किया हुआ था; लेकिन यह बात इन प्रतिमाओं को तालिबान द्वारा नष्ट किए जाने से नहीं बचा सकीं।
अफ़गानिस्तान में धर्म गुरुओं ने पत्थर की इन प्रतिमाओं को इस्लाम के ख़िलाफ़ करार दे दिया था। हालांकि 1999 में मुल्ला मुहम्मद ओमार ने कहा था कि तालिबान इन प्रतिमाओं की रक्षा करेंगे क्योंकि इन्हें देखने आने वाले पर्यटकों से अफ़गानिस्तान को आय होती थी। लेकिन 2001 में तालिबान की सरकार ने प्रतिमाओं को नष्ट कर देने का निर्णय कर लिया। उस समय भारत ने तालिबान के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि भारतीय सरकार अपने खर्च पर इन प्रतिमाओं को भारत में स्थानांतरित कर सकती है जहाँ इन्हें पूरी मानव जाति के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। दुर्भाग्य से तालिबन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
2 मार्च 2001 को तालिबान ने इन प्रतिमाओं पर वायुयान-भेदी तोपों से प्रहार करना शुरु किया। आप इन प्रतिमाओं के आकार का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि कई दिन तक इस तरह के प्रहारों के होते रहने के बावज़ूद प्रतिमाएँ गिरी नहीं। सो, तालिबान ने प्रतिमाओं में तोपों के प्रहार के कारण बने छेदों में टैंक-भेदी सुरंगे लगा दीं और उनमें विस्फोट करके शांति के प्रतीक चिन्हों को नष्ट कर दिया।
6 मार्च 2001 को “द टाइम्स” पत्रिका में मुल्ला मुहम्मद ओमार ने कहा: “मुसलमानों को इन प्रतिमाओं के नष्ट होने पर गर्व करना चाहिए। इन्हें नष्ट करके हमनें अल्लाह की इबादत की है।”
चित्र में देखिये बड़े बुध की प्रतिमा नष्ट होने के पहले और बाद की

हिन्दी बोलने का प्रयास करें!!

ये हैं वो उर्दू के शब्द जो आप प्रतिदिन प्रयोग करते हैं,इन विदेशी शब्दों को त्याग कर मातृभाषा का प्रयोग करें:-
ईमानदार - निष्ठावान
इंतजार - प्रतीक्षा
इत्तेफाक - संयोग
सिर्फ - केवल
शहीद - बलिदान
यकीन - विश्वास, भरोसा
इस्तकबाल - स्वागत
इस्तेमाल - उपयोग, प्रयोग
किताब - पुस्तक
मुल्क - देश
कर्ज - ऋण
तारीफ - प्रशंसा
इल्ज़ाम - आरोप
गुनाह - अपराध
शुक्रिया - धन्यवाद
सलाम - नमस्कार
मशहूर - प्रसिद्ध
अगर - यदि
ऐतराज - आपत्ति
सियासत - राजनीति
इंतकाम - प्रतिशोध
इज्जत - सम्मान
इलाका - क्षेत्र
एहसान - आभार, उपकार
अहसानफरामोश - कृतघ्न
मसला - समस्या
इश्तेहार - विज्ञापन
इम्तेहान - परीक्षा
कुबूल - स्वीकार
मजबूर - विवश, लाचार
मंजूरी - स्वीकृति
इंतकाल - मृत्यु
बेइज्जती - तिरस्कार
दस्तखत - हस्ताक्षर
हैरान - आश्चर्य
कोशिश - प्रयास, चेष्टा
किस्मत - भाग्य
फैसला - निर्णय
हक - अधिकार
मुमकिन - संभव
फर्ज - कर्तव्य
उम्र - आयु
साल - वर्ष
शर्म - लज्जा
सवाल - प्रश्न
जबाब - उत्तर
जिम्मेदार - उत्तरदायी
फतह - विजय
धोखा - छल
काबिल - योग्य
करीब - समीप, निकट
जिंदगी - जीवन
हकीकत - सत्य
झूठ - मिथ्या
जल्दी - शीघ्र
इनाम - पुरस्कार
तोहफा - उपहार
इलाज - उपचार
हुक्म - आदेश
शक - संदेह
ख्वाब - स्वप्न
तब्दील - परिवर्तित
कसूर - दोष
बेकसूर - निर्दोष
कामयाब - सफल
गुलाम - दास

और भी अन्य सैंकड़ों उर्दू के शब्द जो हम प्रयोग में लेते हैं।
जांच करें कि आप कितने उर्दू के शब्द बोलते है।


कांग्रेस ने क्यों हटा दिए ये कानून ?

१. POTA : यह कानून काफी सख्त कानून था आतंकवाद के खिलाफ .. यह कानून कांग्रेस ने सत्ता में आते ही हटा दिया था. आप लोगो की क्या राय है ??
२. Fertility Control act : यह कानून का असली मकसद देश की जनसँख्या को नियंत्रित करना होगा .. इस कानून के तहत एक परिवार के सिर्फ और सिर्फ २ बच्चे हो सकते है | अगर किसी भी परिवार में दो से ज्यादा बच्चे होते है तोह उसको किसी भी तरह की सरकारी मदद नहीं मिलेगी , न कोई सरकारी नौकरी | यह कानून इसीलिए जरुरी है क्यूंकि आज देश में संसाधन बहुत तेजी से इस्तेमाल हो रहे है और बदती जनसँख्या के कारण महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी भी बड रही है
३. Border Security : इस कानून के तहत भारत की पूरी सीमा ८ मीटर ऊँची और १ मीटर मोटी दीवार से सील कर दी जाएगी.. पूरी सीमा पर भारत के जवान होंगे , अगर कोई भी घुसपैठिया भारत की सीमा में घुसता दिखाई दे तोह सीधा गोली मारने का अधिकार होगा भारत के सैनिको केपास यह कानून इसीलिए जरुरी है क्यूंकि आज भारत की सीमा पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है इसी कारण पडोसी देशो जैसे की बांग्लादेश और नेपाल के रस्ते पाकिस्तानी हमारे देश में घुस जाते है और आतंकवाद मचाते है .. वहीँ दूसरी ओर भारत के संसाधनों का उपयोग करके भारत को ही बर्बाद करते है , भारत का आम नागरिक संसाधनों की कमी से भी झुजता है
४. Universal Civil Code : इस कानून के तहत भारत का हर व्यक्ति समान होगा .. सबके लिए कानून एक होगा .. ना कोई हिन्दू होगा और ना ही कोई मुस्लिम होगा .. आज भारत में ऐसा कोई भी कानून नहीं है ! भारतीय जनता पार्टी इस बिल को लायी थी
आप लोगो की इन सभी मुद्दों पर क्या राय है ???


क्या देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर के तत्कालीन राज्य प्रमुख शेख अबदुल्ला को उनकी कश्मीर के अलगाव वादी नीति पर इसी तरह से अड़े रहने की सलाह दी थी । एक बार तो इस बात पर भरोसा नहीं होता कि नेहरू ऐसा कर सकते हैं | शेख अब्दुल्ला ने अपनी किताब आतिशे चिनार में बताया है कि दिल्ली में एक बैठक के दौरान नेहरू ने उनके कान में कहा कि ''आप कश्मीर मामले पर ऐसे ही हिचकिचाएं तो हम आपके गले में सोने की जंजीर पहना देंगे' '|
कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने महाराजा हरिसिंह के खिलाफ जो भी कदम उठाए उन्हे वह रियासत के बहुसंख्यक वर्ग के हित में किए गए कार्य बताते हैं | जबकि ऐसा कुछ नहीं था | शेख अब्दुल्ला,जवाहरलाल नेहरू की सह पर महाराजा हरि सिंह को हटाना चाहते थे | दिल्ली समझौते को अंतिम रूप देने के लिए केन्द्र की ओर से जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, गोपाल स्वामी आय्यंगर और सर गिरिजाशंकर वाजपेयी बातचीत में हिस्सा ले रहे थे और रियासत की तरफ से मैं,(शेख अब्दुल्ला) बख्शी गुलाम मोहम्मद और मिर्जा अफजल बेग भाग ले रहे थे | महाराजा हरी सिंह को इस समझौते में क्यों नहीं बुलाया गया ये आज भी राज का विषय है | शेख अब्दुल्ला के अनुसार ''मुझे अच्छी तरह से याद है जब समझौते की धारा 370 पर बहस हो रही थी तो जवाहरलाल ने मेरे कान में बड़े मनोहर अंदाज के साथ कहा, ''शेख साहब, अगर आप हमारे साथ बगल में खड़े होने में हिचकिचाएंगे तो हम आपके गले में सोने की जंजीर पहना देंगे'' | मैं जवाहरलाल को एक क्षण देखता रह गया'' |
मित्रों, ''आतिशे चिनार'' नामक किताब में कई खुलासे किये गए है जो जवाहरलाल नेहरू की नियत पर सवाल खड़े करते है, पर ये किताब मिलना आसान नहीं कारण आप भी जानते है | मित्रों, आप अंदाजा लगा सकते है की ये जवाहरलाल नेहरू कितनी ही घटिया इंसान था | ये इस देश का दुर्भाग्य था की इतने दिनों तक ओ देश की बागडोर सम्हाले रखा | रही सही कसर उनके खानदान वाले पूरा कर रहे है |


| स्वस्तिक |

स्वस्तिक का आविष्कार आर्यों ने किया और पूरे विश्व में यह फैल गया। आज स्वस्तिक का प्रत्येक धर्म और संस्कृति में अलग-अलग रूप में इस्तेमाल किया गया है।
जर्मनी, यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमेरिका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन किसी न किसी रूप में मिलता है।
स्वस्तिक शब्द को 'सु' एवं 'अस्ति' का मिश्रण योग माना जाता है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्ति' का अर्थ है- होना। अर्थात 'शुभ हो', 'कल्याण हो'।
स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीजमंत्र होता है। इसमें जो चार बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक के प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है।
जैन धर्म के प्रतीक चिह्न में स्वस्तिक को प्रमुखता से शामिल किया गया है।
यहूदी और ईसाई धर्म में भी स्वस्तिक का महत्व है। ईसाई धर्म में स्वस्तिक क्रॉस के रूप में चिह्नित है। एक ओर जहां ईसा मसीह को सूली यानी स्वस्तिक के साथ दिखाया जाता है तो दूसरी ओर यह ईसाई कब्रों पर लगाया जाता है।


हमारे धर्मनिरपेक्ष देश में "धर्म के आधार" पर अलग-अलग कानून क्यों ?

एक "हिन्दू लड़की" 15 साल की उम्र पूरा करने के बाद "निकाह" कर सकती है | "सुप्रीम कोर्ट" से लेकर भारत के "सभी कोर्ट" इसको मानते है, बस शर्त ये है कि लड़की "इस्लाम कबूल" कर ले | क्योंकि "मुस्लिमो" के लिए देश में उनके लिए "अलग कानून" है | ऐसे "दोगले कानून" के वजह से घर से भागी हुई हिन्दू लड़की मुस्लिम बन जाती है | क्योंकि हिंदु मैरिज एक्ट के अनुसार लडकी के "विवाह" के लिये 18 वर्ष का होना जरुरी होता है | जबकि "मुस्लिमो के निकाह" के लिये 15 वर्ष ही चाहिये | जिस लडकी की उम्र 15 से 18 वर्ष के बीच है उसकी शादी हिंदु मैरेज एक्ट के हिसाब से गैर कानूनी है, इसलिये शादी को कानूनी मान्यता प्राप्त करने के लिये "इस्लाम कबूल" करना पडता है | फिर विवाह को निकाह का नाम दिया जायेगा | क्या यह कानून भी धर्म परिवर्तन को बढावा देना वाला नहीं है ?
इस पर कभी कोई चर्चा क्यों नही करता | अगर हिंदु मैरिज एक्ट मे भी लडकी के विवाह के लिये निम्नतम उम्र 15 वर्ष कर दे या फिर कोई ऐसा करने की मांग करे. . तो बवाल खडा हो जायेगा। महिला आयोग, मानवाधिकार, बच्चो के अधिकार और पता नही कितने आयोग और मीडिया वाले उछलने लगेंगे खूब चर्चा और बहस होगी, पर आज वो सभी आयोग और मीडिया वाले चुप बैठे हैं |
कोई बतायेगा मुझे की धर्मनिरपेक्ष देश मे "धर्म के आधार" पर अलग- अलग कानून कैसे बन सकते हैं ?

हरिश्चद्र किले में स्तिथ केदारेश्वर गुफा,महाराष्ट्र

Going rightwards of Harishchandreshwar temple, there is the huge cave of Kedareshwar, in which there is a big Shivlinga, which is totally surrounded by water. The total height from its base is five feet, and the water is waist-deep. It is quite difficult to reach the Shivlinga because the water is ice-cold. There are sculptures carved out here. In monsoon it is not possible to reach this cave, as a huge stream flows across the way.
As can be seen from the picture, there is a huge rock above the Shiva Linga. There were four pillars built around the Shiva Linga. No one really knows the history about these pillars, but it is said that the pillars were built to depict the four 'Yugas' of Life - 'Satya Yuga', 'Tretha Yuga', 'Dwapara Yuga' and 'Kali Yuga'. When a Yuga comes to the end of its time, one of the pillars apparently breaks down. Three of the pillars have already broken down. The general belief is that the current phase is the 'Kali Yuga' and the day the fourth pillar breaks down - it will be looked to as the last day of the current era.

आतंकवाद समस्या नहीं -जेहादी रणनीति है !

अब तक आतंकवाद को एक समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है ,जैसे की वह कोई रोग है जिसका इलाज करने पर वह ठीक हो जाएगा .वास्तव में यह एक विचारधारा है जैसे की कम्युनिज्म .इसका लक्ष्य विश्व से गैर मुस्लिमों का सफाया कर के इस्लामी हुकूमत कायम करना है.आतंकवाद इन लोगों का स्वाभाव है .इसे इस्लामी जेहादी विचारधारा कहना उचित होगा .अपना मकसद पूरा करने के लिए यह लोग कई तरीके अपनाते हैं ,जिन में आतंकवाद भी एक तरीका है। अन्य में धर्म परिवर्तन कराना ,घुसपैठ ,स्मगलिंग ,नकली नोट छापना ,और नशे का व्यापार करना हैं.इसका उद्देश्य गैर मुस्लिम देशों में भय का वातावरण पैदा करना ,अस्थिरता की स्थिति बना कर ,बलपूर्वक इस्लामी राज्य की स्थापना करना है ।

यही कारन है की अबतक जितने भी उपाय किए गए ,वह आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने में विफल हुए हैं आतंकवाद और फ़ैल रहा है .कोई देश ऐसा नहीं है जहाँ आतंकवादी घटनाएँ न हुई हों।

आमतौर पर आतंकवाद के ,गरीबी ,अशिक्षा ,बेरोज़गारी या राजनितिक कारण बताये जाते हैं। कभी ओसामा बिनलादेन ,कभी तालिबान और कभी पाकिस्तान को जिम्मेदार बताया जाता है .या इसका कारण इस्राइल -फिलिस्तीन विवाद को बताया जाता है.मगर सच्चाई कुछ और ही है.आतंकवाद एक जेहादी रणनीति है.जिसका पालन करना मुसलमाओं का फ़र्ज़ है।

इस जेहादी विचार के बारे में मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक जीजस इन इंडिया में पेज १ से २० तक विस्तार से लिखा है। तह किताब कादियान पंजाब में २५ अप्रैल १८८९ को प्रकाशित हुई थी जिस समय यह किताब छपी थी उस समय न तो कश्मीर समस्या थी न इस्राइल का अस्तित्व था ,न ओसामा बिन लादेन था और न तालिबान ही थे, जिन्हें आज आतंकवाद के लिए जिम्मेदार बताया जाता है.पाकिस्तान का तो नाम भी नही था।

मिर्जा गुलाम अहमद कुरान ,हदीस के अच्छे जानकर और उर्दू अरबी फ़ारसी अंग्रेज़ी के विद्वान थे.उन्होंने इस्लामी जेहाद अर्थात आतंकवाद के बारे में जो खुल कर लिखा है ,उसे पढ़ कर हमारे नेताओं की आँखें जरूर खुल जाएँगी। कम से कम हमारे देशवासी सावधान हो जाएँ तो काफी होगा।

मिर्जा लिखते हैं की मुस्लमान मुहम्मद को अपना आखिरी नबी मानते हैं यानी भविष्य में कोई नबी नही आएगा। यह उनका ईमान है .वह यह भी मानता है की क़यामत से पाहिले एक इमाम मुहम्मद महदी जमीन पर उतरेंगे, जो बनी फातिमा कबीले से होंगे.इस समय सशरीर जन्नत में मौजूद हैं। जब वह जमीं पर उतरेंगे तो ईसा मसीह भी उनके साथ होंगे ,.इसके बाद महदी दमिश्क शहर में किसी जगह एक मीनार पर चढ़ जायेंगे.उन्हें दो फ़रिश्ते उठाये होंगे.तब इमाम सभी गैर मुसलमानों को अपनी तलवार से कतला कर देंगे ,कोई पूछ ताछ न होगी बस वाही लोग बच सकेंगे जो बिना देरी किए इस्लाम काबुल कर लेंगे।

ऐसा विस्वास इस्लाम के सभी फिरकों का है ,जिसमे अहले सुन्नत और अहले हदीस ,जिन्हें वहाबी भी कहते हैं प्रमुख हैं। इनका माना है की वह इमाम महदी का काम आसान बनाना उनकी जिम्मेदारी है। इसलिए पहिले तो लोगो को मुसलमान बनने के लिए धमकाया जाए और न माने तो तलवार के घाट उतार दिया जाए .क्योंकि बाद में ख़ुद इमाम महदी गैर मुसलमानों को दर्दनाक सज़ा देंगे। वह ईसाइयों के सारे क्रॉस तोड़ देंगे। और गैर मुसलमानों के खून से ज़मीन भर देंगे। वह इतना खून बहायेंगे की इतिहास में पहिले कभी नही बहाया गया होगा

इम्मम न तो किसी को समझायेंगे ,न किसी की फरियाद सुनेंगे ,बल्कि बिना किसी सूचना के कत्लेआम शुरू कर देंगे.और ईसा मसीह उनके एक सेनापति की तरह काम जल्दी करने में उनकी सहायता करेंगे।

यह विचार इन मुसलामानों के दिमाग में इस तरह से ठसा हुआ है की वे किसी गैर इस्लामी सरकार को न तो अच्छा मानते हैं न उसके कानून का पालन करते हैं। उनके अनुसार गैर मुस्लिमों के लिए सिर्फ़ दो हो विकल्प हैं ,या तो वे इस्लाम काबुल करें या मरने के लिए तैयार रहें।

इस जेहादी विचार के चलते इन लोगों के दिल में दया इंसानियत ,समानता,और सहानुभूति की जगह दूसरो के प्रति नफ़रत क्रूरता और गैर मुस्लिमों के प्रति शत्रुता की भावना भरी पड़ी है। इनके अनुसार गैर मुस्लिमों को मारना एक धार्मिक कार्य है.मौलवी मदरसों में बच्चों में यह विचार इस तरह से भर देते हैं की उनके लिए निर्दोषों की हत्या अपराध नहीं बल्कि अल्लाह को खुश करने का काम है उन्हें समझाया जाता है की ऐसा करने से उनका समान बढ़ गया है। मरने के बाद उन्हें जन्नत मैं उच्च स्थान प्राप्त होगा।;

उनकी जिम्मेदारी है की साड़ी दुनिया को मुसलमान बनाने के लिए सभी प्रकार के उपाय किए जाएँ .जो इस बात को नहीं मानता उसे काफिर घोषित किया जाए और सज़ा दी जाए ।

ऐसे लोग दोहरा चरित्र रखते हैं .दिखाने के लिए वह आतंकवाद का विरोध करते हैं ,लेकिन गुप्त रूप से आतंकवादिओं की सहायता करते हैं सरकार और साधारण लोगों के सामने जेहादी विचार का खंडन करते हैं ।

इस कपट नीति को -तकिया- कहा जाता है .इसके मुताबिक एक गिरोह को आतंकवाद फैलाने के लिए कहा जाता है ,और दूसरा गिरोह आतंकवादी घटनाओं की निंदा करता है .और सफाई देता है की इस्लाम में आतंकवाद को कोई स्थान नहीं है। ऐसा प्रचार इस लिए किया जाता है की उन पर किसी प्रकार की शंका न की जाए.और पहिला गिरोह अपना काम करता रहे। इसके लिए सरकार में कुछ अपने लोग घुसा लिए जाते हैं।

इसी रणनीति के चलते पूरे विश्व में आतंकवाद फैलता जा रह है .जब तक इसकी जड़ पर प्रहार नही किया जायेगा इस पर अंकुश लगाना सम्भव नही है ।

हमें बाहर से इतना खतरा नहीं है जितना भीतर छुपे उनके साथिओं से है जो उनकी सहायता करते हैं इस लिए सावधानी की जरूरत है


कुरान, हदीस की असलियत को मुसलमान कैसे छुपाता है

झूठ के बोझ को संभालने के लिए मुसलमान कैसे रात दिन एक कर देते है ,एक आनलाइन डिबेट मे इसका नमूना देखिए :-
1) इस्लाम की पोल खुलने पर सबसे पहले मुस्लिम बोलते है कि ये सब तथ्यहीन आधारहीन है ,अज्ञानता है ,इस्लाम मे कोई जबरदस्ती नही है! अगर आप रैफरेंस देंगे वो सिरे से नकार देंगे और आपको पूरी तरह कुरान स्टड़ी करने को बोला जायेगा तभी रोशनी मिलेगी ! .
2) अगर आप कुरान और हदीसो के हवाले देंगे तो आपको बोलेगे कि तुमने आयते
अधूरी समझी है ,आयतो को गलत संदर्भ मे लिया है और उन आयतो मे लडाई का मतलब उस समय के युद्ध से था । (यानि इससे मुस्लिम यह दिखाना चाहते है कि अब हम दुनियाभर मे जेहाद नही कर रहे है) .
3) अगर आप संपूर्ण आयतो और हदीसो का हवाला देंगे तो वो कहेंगे आपका अनुवाद गलत है और आपको अरबी सीखने के साथ आरिजनल वर्जन पढ़ने को बोला जायेगा ! .
4) अगर आप कहेंगे कि आप अरबी भी जानते है साथ ही आपके पास प्रमाणित अनुवाद और सारी जानकारी उन्ही प्रमाणित रिसोर्स से है जिससे सर्वश्रेष्ठ मुस्लिम स्कालर्स हवाला देते है ,तो मुसलमान कहेंगे कि हदीसे पढ़ना भी जरूरी है … अगर आप हदीस से सच साबित करेंगे तो वे कहेंगे कुरान ही एकमात्र सच है ! .
5) इन सबके बाद अगर आप जारी रखते है तो वे इस मुद्दे से बात घुमाने के लिये दूसरे टापिक उठायेंगे जैसे गरीबी ,इंसानियत ,शांति ,फिलिस्तीन ,इजराइल ,अमेरिका .
6) अगर आप कहेंगे कि कुरान इंसान ने लिखी है तो वे Dr Bucalie की किताब
का हवाला देकर सुनिश्चित करेंगे कि कुरान मे विज्ञान भी है ! .
7) जबकि असल मे Dr bucalie सऊदी अरब से पैसे लिया करता था और Dr bucalie को कई विशेषज्ञो ने गलत और झूठा साबित कर दिया है ! .
8) अब फिर मुस्लिम बोलेंगे कि ये सब वैस्टर्न मीड़िया का प्रौपगेंड़ा है इस्लाम
को बदनाम करने का ! .
9) अगर आप फिर भी सच सामने लायेंगे तो मुस्लिम कुतर्को पर उतर आएंगे और दूसरे मजहबो मे की किताबो मे कमियां निकालेंगे जैसे बाइबल ,तोराह ,वेद गीता आदि ! .
10)लेकिन हद तो यहा है कि जिन किताबो को ये नही मानते उन्ही किताबो मे ये अपने मोहम्मद जी को अवतार भी दिखायेंगे (जैसे वेदो मे मुहम्मद को दिखाना).. और इस्लाम को जबरदस्ती विज्ञान से जोड़गे! (मतलब किसी भी तरह से हर हाल मे इस्लाम और मौहम्मद जी की मार्केटिंग करते रहते है ! इस तरह ये हमेशा काफिरो को थकाकर और उलझा कर रखते है !) .
11) अगर आप न रूकेतो मुसलमान द्वारा आपको जाहिल झुठा ,कुत्ता ,जालिम
वगैरह के साथ मां बहन की गाली और निजी हमले किये जायेंगे .. .
12) अब मुस्लिम रट्टा लगायेंगे कि “इस्लाम तेजी से फैल रहा है “लेकिन जैसे ही सच्चाई सामने लायी जाये तो ये चिल्ला भी पड़ेंगे “इस्लाम खतरे मे है !” .
13) अगर फिर भी आप असली मुद्दे पर अड़े रहेंगे तो मुसलमान बोलेंगे तुम जहुन्नम मे जाओगे …आखिरी दिन तुम्हारा हिसाब होगा …तुम पर अल्लाह का आजाब होगा ..अल्लाह तुम्हारे साथ ये कर देगा.. वो कर देगा ,वगैरह वगैरह! .
14) और आखिर मे जब सब फेल हो जायेगा तो अब मुसलमान धमकाने पर आ
जायेंगे जैसे तुम्हे देख लूंगा,बचके रहना ,अपना नंबर और एड्रेस बताओ ! .

औरंगज़ेब ने कैसे तुड़वाया केशव राय मंदिर को

केशव राय का महान मंदिर, मथुरा में बीर सिंह देव बुंदेला द्वारा जहांगीर के समय से पहले बनवाया गया था, उस समय इसकी लागत ३३ लाख रूपए आयी थी, ये उस समय देश क सबसे शानदार मंदिरों में से एक था तथा स्थापत्य कला में भी ये मंदिर बहुत महत्वपूर्ण था (चित्र में बायीं तरफ) इसे भगवांन कृष्ण कि जन्मभूमि पर बनाया गया था, इसके दर्शन हेतु विदेशो से भी लोग आया करते थे, बहुत कम लोगों को पता है, शाहजहां का बेटा दारा शिकोह, औरंगजेब के बिलकुल उलट था, उसकी दिलचस्पी हिन्दू धर्म में थी, उसने उपनिषदों का अनुवाद भी करवाया था, उसने मूर्ति के सामने नक्काशीदार पत्थरों की रेलिंग लगवायी थी, जिसके उस पार खड़े होकर भक्त दर्शन करते थे! जिसे औरंगजेब ने अक्टूबर १६६६ को हटा दिया था!
दारा शिकोह की हत्या करने के बाद औरंगजेब ने ये पूरा मंदिर रमजान के महीने में ११ फ़रवरी सन १६७० को रमजान के महीने में तोड़ दिया था, इसकी स्थापत्य कला और विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की इसे पूरी तरह से तोड़ने में ३ दिन लगे थे! (११ फ़रवरी सन १६७० तक)
अभी जो वर्तमान केशव देव मंदिर आप देखते है, उसे महामना मदन मोहन मालवीय ने अथक प्रयासों से पुनः बनवाया था, ये मंदिर १९६५ में बनकर पूरा हुआ!
ये तो सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण था, मुगलों द्वारा मंदिरों के विध्वंस और उनके मलबों के नीचे दफन निर्दोषों की चीख-पुकारों की लिस्ट काफी लम्बी है

ॐ के जाप से होता है शारीरिक लाभ

ॐ केवल एक पवित्र ध्वनि ही नहीं, अपितु अनंत शक्ति का प्रतीक है। ॐ अर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, जो सर्व विदित है । अ उ म् । "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना , "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना । ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है ।
ॐ के उच्चारण से शारीरिक लाभ -
1. अनेक बार ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।

2. अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
3. यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
4. यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
5. इससे पाचन शक्ति तेज़ होती है।
6. इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
7. थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।
8. नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।
9. कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।
10. ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।
11. ॐ के दूसरे शब्‍द का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रंथी पर प्रभाव डालता है।

पिछले 100 वर्षों में भारत के कितनी बार "कोंग्रेस " ने टुकडे किये

1. सन 1911 में भारत से श्री लंका अलग हुआ,जिसको तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं का समर्थन प्राप्त था
2. सन 1947 में भारत से बर्मा -म्यांमार अलग हुआ ,कारण कांग्रेस ही थी
3. सन 1947 में भारत से पाकिस्तान अलग हुआ । कारण कांग्रेस ही थी
4. सन 1948 में भारत से आज़ाद कश्मीर काटकर अलग कर दिया गया और नेहरु जी की नीतियों ने सरदार पटेल के हाथ बांधे रखे थे |
5. सन 1950 में भारत से तिब्बत को काटकर अलग कर दिया गया और नेताओं ने मुह बंद रखा |
6. सन 1954 में बेरुबादी को काट कर अलग कर दिया गया |कारण कांग्रेस ही थी
7. सन 1957 में चीन ने भारत के कुछ हिस्से हड़प लिए और नेहरु ने कहा की यह घास फूंस वाली जगह थी |
8. सन 1962 में चीन ने अक्साई चीन का 62000 वर्ग मिल क्षेत्र भारत से छीन लिया ,और नेहरु जी हिंदी चीनी भाई-भाई कहते रहे ।
9. सन 1963 में टेबल आइलैंड पर बर्मा ने कब्ज़ा कर लिया ,और कांग्रेशी खामोश रहे । वहां पर म्यामांर ने हवाई अड्डा बना रखा है |
10. सन 1963 में ही गुजरात का कच्छ क्षेत्र छारी फुलाई को पाकिस्तान को दे दिया गया |
11. सन 1972 में भारत ने कच्छ तिम्बु द्वीप सर लंका को दे दिया |
12. सन 1982 में भारत के अरुणांचल के कुछ हिस्से पर चीन ने कब्ज़ा कर लिया , और हम बात करते रहे |
13. सन 1992 में भारत का तीन बीघा जमीनी इलाका बांगला देश ने लेकर चीन को सौंप दिया ।
14. सन 2012 मे भी बांग्लादेश को कुछ वर्गमील इलाका कॉंग्रेस ने दिया और कहा की ये दलदली इलाका था |


सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य ‘’हेमू‘’

हेमू का जन्म सन 1501 में राजस्थान के अलवर जिले के मछेरी नामक एक गांव में रायपूर्णदास के यहां हुआ था। इनके पिता पुरोहिताई का कार्य करते थे किन्तु बाद में मुगलों के द्वारा पुरोहितो को परेशान करने की वजह से रेवारी (हरियाणा) में आ कर नमक का व्यवसाय करने लगे |

‘हेमू’ (हेम चन्द्र) की शिक्षा रिवाडी में आरम्भ हुई। उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, फारसी, अरबी तथा गणित के अतिरिक्त घुडसवारी में भी महारत हासिल की। समय के साथ साथ हेमू ने पिता के नये व्यवसाय में अपना योगदान देना शुरु किया। काफी कम उम्र से ही हेमू, शेर शाह सूरी के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट (गन पावडर हेतु) उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिताजी के साथ हो लिए थे. सन १५४० में शेर शाह सूरी ने हुमायु को हरा कर काबुल लौट जाने को विवश कर दिया था. हेमू ने उसी वक़्त रेवारी में धातु से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव राखी, जो आज भी रेवारी में ब्रास, कोंपर, स्टील के बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है.| जब सन 1545 में शेरशाह सूरी की मृत्यु हुई, तब तक हेमू ने अपने प्रभाव का अच्छा खासा विस्तार कर लिया था। यही कारण है कि शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद जब उसका पुत्र इस्लामशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो उसने हेमू की योग्यता को पहचान कर उन्हें शंगाही बाजार अर्थात दिल्ली में ‘बाजार अधीक्षक’ नियुक्त किया। कुछ समय बाद बाजार अधीक्षक के साथ-साथ हेमू को आंतरिक सुरक्षा का मुख्य अधिकारी भी नियुक्त कर दिया और उनके पद को वजीर के पद के समान मान्यता दी।

सन 1553 में हेमू के जीवन में एक बड़ा उत्कर्षकारी मोड़ आया। इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद आदिलशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा। आदिलशाह एक घोर विलासी शराबी और लम्पट शासक था। उसे अपने विरुद्ध बढ़ते विद्रोही को दबाने और राजस्व वसूली के लिए हेमू जैसे विश्वस्त परामर्शदाता और कुशल प्रशासक की आवश्यकता थी।

उसने हेमू को ग्वालियर के किले में न केवल अपना प्रधानमंत्री बनाया वरन अफगान फौज का मुखिया भी नियुक्त कर दिया। अब तो राज्य प्रशासन का समस्त कार्य हेमू के हाथ में आ गया और व्यवहारिक रूप में वह ही राज्य का सर्वेसर्वा बन गए। शासन की बागडोर हाथों में आते ही हेमू ने टैक्स न चुकाने वाले विद्रोही अफगान सामंतों को बुरी तरह से कुचल डाला। इब्राहिम खान, सुल्तान मुहम्मद खान, ताज कर्रानी, रख खान नूरानी जैसे अनेक प्रबल विद्रोहियों को युद्ध में परास्त किया और एक-एक कर उन सभी को मौत के घाट उतार दिया। हेमू ने छप्परघटा के युद्ध में बंगाल के सूबेदार मुहम्मद शाह को मौत के घाट उतारा व बंगाल के विशाल राज्य पर कब्जा कर अपने गवर्नर शाहबाज खां को नियुक्त किया। इस बीच आदिल शाह का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और हेमू व्यवहारिक रूप से बादशाह माने जाने लगे। उन्हे हिंदू तथा अफगान सभी सेनापतियों का भारी समर्थन प्राप्त था। हेमू जिन दिनों बंगाल में विद्रोह को कुचलने में लगे थे। उनकी अनुपस्थिति का लाभ उठाकर जुलाई 1555 में हुमायुं ने पंजाब, दिल्ली और आगरा पर पुन: अपना अधिकार कर लिया।

इसके 6 माह बाद ही हुमायुं का देहांत हो गया और उसका नाबालिग पुत्र अकबर उसका उत्तराधिकारी बना। हेमू ने इसे अनुकूल अवसर जानकार मुगलों को परास्त करके और दिल्ली पर अपना एकछत्र शासन करने के स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा। वह एक विशाल सेना को लेकर बंगाल से वर्तमान बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश को रौंदते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े। उनके रण कौशल के आगे मुगल फौजदारों में भगदड़ मच गई। आगरा सूबे का मुगल कमांडर इस्कंदर खान उजबेक तो बिना लड़े ही आगरा छोड़कर भाग गया। हेमू ने इटावा, काल्पी, बयाना आदि सूबों पर बड़ी सरलता से कब्जा कर वर्तमान उत्तरप्रदेश के मध्य एवं पश्चिमी भागो ंपर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। अब दिल्ली की बारी थी। 6 अक्टूबर 1956 को तुगलकाबाद के पास मात्र एक दिन की लड़ाई में हेमू ने अकबर की फौजों को हराकर दिल्ली को फतेह कर लिया। पुराने किले में जो प्रगति मैदान के सामने है अफगान तथा राजपूत सेनानायकों के सान्निध्य में पूर्ण धार्मिक विधि विधान में राज्याभिषेक कराया।

उन्होंने शताब्दियों से विदेशी शासन की गुलामी में जकड़े भारत को मुक्त कराकर हेमचंद्र विक्रमादित्य की उपाधि धारण की व उत्तर भारत में दक्षिण भारत में स्थापित विजय नगर साम्राज्य की तर्ज पर हिंदू राज की स्थापना की। इस अवसर पर हेमू ने अपने चित्रों वाले सिक्के ढलवाए सेना का प्रभावी पुनर्गठन किया और बिना किसी अफगान सेना नायक को हटाए हिंदू अधिकारियों को नियुक्त किया। अपने कौशल, साहस और पराक्रम के बल पर अब हेमू हेमचंद विक्रमादित्य के नाम से देश की शासन सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर आसीन थे। अब्बुल फजल के अनुसार दिल्ली विजय के बाद हेमू काबुल पर आक्रमण करने की योजना बना रहे थे।

उधर अकबर अपने सेनापतियों की सलाह पर हेमू की बढ़ती शक्ति से डर कर काबुल लौट जाने की तैयारी में था कि उसके संरक्षक बैरमखां ने एक और मौका लेने की जिद की। दोनों ओर युद्ध की तैयारियां जोरों पर थी। हेमू एक विशाल सेना लेकर दिल्ली से पानीपत के लिए निकले। 5 नवम्बर 1556 को पानीपत के मैदान में दोनों सेनाएं आमने-सामने आ डटी। भय और सुरक्षा के विचार से अकबर और बैरमयां ने स्वयं इस युद्ध में भाग नहीं लिया और वे दोनों युद्ध क्षेत्र से 8-10 मील की दूरी पर, सौंधापुर गांव के कैंप में रहे किंतु हेमू ने स्वयं अपनी सेना का नेतृत्व किया। भयंकर युद्ध मे प्रारंभिक सफलताओं से ऐसा लगा कि मुगल सेना शीघ्र ही मैदान से भाग जाएगी लेकिन दुर्भाग्यवश एक तीर अचानक हाथी पर बैठे हेमू की आंख में लग गया। तीर निकाल कर हेमू ने लड़ाई जारी रखा। तीर लगने के कारण हेमू बेहोश हो गए। हेमचन्द्र का सर अकबर ने खुद काटा और अकबर को गाजी की ऊपदी मिली । हेमू का कटा सिर अफगानिस्तान स्थित काबुल भेजा गया जहां उसे एक किले के बाहर लटका दिया गया। जबकि उनका धड़ दिल्ली के पुराने किले के सामने जहां उनका राज्यभिषेक हुआ था, लटका दिया गया। इस प्रकार एक असाधारण व्यक्तित्व के धनी, भारत सम्राट की गौरवपूर्ण जीवन यात्रा पूरी हुई।

बैरमखाँ ने सैनिकों के सशस्त्र दल को हेमचन्द्र के अस्सी वर्षीय पिता के पास भेजा। उन को मुस्लमान होने अथवा कत्ल होने का विकल्प दिया गया। वृद्ध पिता ने गर्व से उत्तर दिया कि ‘जिन देवों की अस्सी वर्ष तक पूजा अर्चना की है उन्हें कुछ वर्ष और जीने के लोभ में नहीं त्यागूं गा’। उत्तर के साथ ही उन्हे कत्ल कर दिया गया था।

–दिल्ली पहुँच कर अकबर ने ‘कत्ले-आम’ करवाया ताकि लोगों में भय का संचार हो और वह दोबारा विद्रोह का साहस ना कर सकें। कटे हुये सिरों के मीनार खडे किये गये। पानीपत के युद्ध संग्रहालय में इस संदर्भ का ऐक चित्र आज भी हिन्दूओं की दुर्दशा के समारक के रूप मे सुरक्षित है किन्तु हिन्दू समाज के लिय़े शर्म का विषय तो यह है कि हिन्दू सम्राट हेम चन्द्र विक्रमादूतीय का समृति चिन्ह भारत की राजधानी दिल्ली या हरियाणा में कहीं नहीं है। इस से शर्मनाक और क्या होगा कि फिल्म ‘जोधा-अकबर’ में अकबर को महान और सम्राट हेमचन्द्र को खलनायक की तरह दिखाया गया था।


क्‍या हिन्‍दू होना अपराध है - जागो हिन्‍दू जागो

यह कैसी विडम्‍बना है कि स्‍वयं को बुद्धिजीवी कहलाने वाला वर्ग विशेषकर संचार मीडिया के कुछ तथाकथित पत्रकार स्‍वयं को देश का भला करने वाले अपने आप को सबसे बड़ा झंडाबरदार समझते हैं। अपने आपको तथाकथित धर्म निरपेक्षता का चोला पहनाकर ये सेकुलर मीडियामैन देश के 85 करोड़ हिन्‍दुओं को अपमानित करने का कोई भी मौका नही चूकते। देश का असहाय हिन्‍दू ये सब अपनी आंखों से देखता हुआ सहता रहता है। कश्‍मीरी पण्डितों के साथ कश्‍मीरी मुस्लिम आतंकियों ने क्‍या किया किसी से नही छिपा है मगर आज भी 4 लाख कश्‍मीरी पण्डित शरणार्थी की तरह जीवन बिताने पर अभिशप्‍त हैं। सारा देश जानता है कि कैसे मुस्लिम आतंकी दरिंदो ने कश्‍मीरी पण्डितों की बहू, बेटियों के साथ उनके सामने बलात्‍कार किया फिर उन बलात्‍कार पीडि़ताओं को काट-काट कर दरिया में फेंक दिया और केन्‍द्र की राजीव गांधी कांग्रेस सरकार ये सब देखती रही सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के वोटों के लिये ताकि सत्‍ता की मलाई हमेंशा मिलती रहे। कल जो कश्‍मीर में हुआ आज पं0 बंगाल, केरल और असम में जारी है। देश का हिन्‍दू यदि सजग नही हुआ तो यही खूनी खेल पूरे देश में होगा।
ये खेल तब भी हुआ था जब मुगलों का शासन था। मुगल काल में इतनी क्रूर प्रताड़ना झेलने के बाद हिन्‍दू अपने आप को सावधान नही कर पाया ऐसा इसलिये कि हमारे समाज में गांधी और नेहरू जैसे गद्दार आज भी मौजूद हैं जो हमेंशा हिन्‍दुओं के हितों की बलि चढ़ाते हैं जब तक इस देश में गांधी और नेहरू जैसे देश को बांटने वाले धोखेबाज हैं तब तक इस देश के हिन्‍दुओं का भला कैसे हो सकता है। इतना ही नही इतनी मुस्लिम परस्‍ती कि हिन्‍दुओं को ही ये नेता आतंकवादी घोषित कर दिये।
जिस हिन्‍दू के पैर के नीचे एक चींटी आ जाने पर अत्‍यंत दु:खी हो जाता है जिसकी संस्‍कृति उसे विश्‍व कुटुम्‍ब की भावना, अतिथि देवो भव: व हर प्राणी पर दया करना सिखाती है। ऐसे हिन्‍दुओं को संकीर्ण विचारधारा के तथाकथित धर्म निरपेक्ष नेता आतंकवाद, सम्‍प्रदायवाद न जाने कितने घटियां आरोप लगाते रहते हैं वहीं ये नेता चंद वोटों के लिये जेहादी मुस्लिम आतंकियों को समर्थन व संरक्षण देते हैं। कश्‍मीर के आतंकियों के परिवार को ये पेंशन बांटते हैं। ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी कहते हैं, देश का भूतपूर्व गृहमंत्री हाफिज सईद जैसे दुर्दांत आतंकवादी को हाफिज साहब कहकर पुकारता है। इंसानियत को भी लजा देने वाले पाखण्‍डी व झूठे नेताओं के चाल और चरित्र को समझकर पूर्णत: इनका बहिष्‍कार नही किया गया तो ये हिन्‍दुओं का विनाश करने के लिये किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।


इसको कृपा करके पूरा पढ़ो आपकी आत्मा तड़प उठेगी

ये दुनिया का सब से बड़ा दिल दहलाने वाला बच्चों को सेक्शुअल नरसंहार था जो इतना दर्दनाक था की पूरी दुनिया दरिंदे मुसलमानो के द्वारा किए गये इस कृत्य पर सन्न रह गयी.. भारत तक ही नही पूरी दुनिया के न्यूज़ में इस नरसंहार की कहानी पूरी नही आने दी गयी ..

बेसलान के एक बच्चों के स्कूल में अचानक मुस्लिम हमलावरों ने इतिहास का सब से घिनौना हमला बोला ..वो लोग अंदर घुस गये .. इस हमले में जो मुसलमानो ने किया वो आज तक किसी मीडीया ने बोलने की हिम्मत नही दिखाई.. अंदर घुसते ही जो भी स्कूल के अंदर पुरुष थे उनको तुरंत ही मार दिया गया ताकि किसी तरह के प्रतिरोध की संभावना ना रहे..
इसके बाद जैसे ही इनकी नज़रें डरी हुई और बेसहारे स्कूल की छोटी बच्चियों पर गयीं .. इनकी आँखों मे वासना उभर उठी ..इनके अंदर का शैतान अल्लाह जाग उठा ..

बेसलान स्पष्ट रूप से एक यौन हत्या थी. मुसलमान इस स्कूल में आतंकवाद से भी ज़्यादा की दरिंदगी दिखना चाहते थे ..
अल्लाह के सेक्स हत्यारों ने अब सभी छोटी छोटी बच्चियों की तरफ देखा .. उन सबको अंदर बने एक जिम हॉल में ले गये ..
इसके बाद छोटी छोटी बच्चियों की चीखती आवाज़ें इनके ज़ुल्म के आगे दब कर रह गयी …अपने ही सारे दोस्तों के सामने अपमानित होती रही …
बारी बारी से ३ साल ५ साल की एक एक बच्ची के साथ कई कई मुसलमानो ने बलात्कार किया गया.. ना सिर्फ़ मुस्लिम हैवानों ने बलात्कार किया बल्कि बच्चों के गुप्तांगों में अपने बंदूकों और अन्य वस्तुओं को … ****####@@@
दूसरे सारे बंधक बच्चों को ये सब देखने को मजबूर किया गया .. और आतंकवादी हंस रहे थे..

जितना बच्चों के गुप्तांगों से खून निकलता .. मुसलमान उतनी ही ज़ोर से हंसते ..
बहुत सारी छोटी छोटी बच्ची ज़्यादा ब्लीडिंग की वजह से वहीं उसी वक़्त मर गयी .. रेप करने के दौरान दरिंदे वीडियो शूट भी कर रहे थे… खून से फर्श लाल हो गयी थी लड़कियाँ इस रेप में और हथियार के गुप्तांगों में डालने के वजह से खून से सन गयीं.. जिस्म से इतना खून निकला की तत्काल चिकित्सा नही होने की वजह से वहीं चीखती चिल्लती मासूमों ने दम तोड़ दिया ..
लेकिन इन सब के बाद भी मुसलमानो का दिल सिर्फ़ रेप से और हत्या से नही भरा था .. सारे मुसलमानो ने छोटे छोटे बच्चों को पीटना शुरू किया .. बुरी तरह पीटा ..
वास्तव मे पिटाई तो वो शुरू से ले कर अंत तक करते रहे .. इस दौरान मुसलमान खुश होते.. हंसते ..

आतंकवादियों ने बच्चों को खूब लहू लुहान किया… और खूब ठहाके लगाए .. जैसे जैसे समय बीता .. मुसलमानो के ज़ुल्म और बढ़ते गये.. जब बच्चों ने प्यास के मारे पानी माँगा तो वो लोग हँसे … मज़ाक उड़ा रहे थे…
उस दिन मौसम भी अजीब था बाहर जबरदस्त गर्मी थी और अंदर के उस हॉल में एयर कंडीशनर भी काम नही कर रहा था..बच्चे प्यास से तड़प रहे थे .. पानी माँग रहे थे पीड़ित बच्चों के हालत और बुरे उस वक़्त हो गये जब उन दरिंदों ने बच्चों को अपना पेशाब पीने पर मजबूर किया .. कुछ मामलों में तो बंधकों के उपर ही पेशाब किया ..

आतंकवादियों ने एक गेम खेला.. बच्चों के सामने जो बहुत ही ज़्यादा प्यासे थे .. उनके सामने पानी के बर्तन को रख दिया और कहा जो इसको पीने आएगा उसको मैं गोली मार दूँगा ..
जब बच्चों ने पुपचा की क्या वो रेस्ट रूम मे जा कर पानी पी सकते हैं तो उस मे से एक आतंकी मुस्लिम ने कहा कि .. हम तुम्हारे अंकल नही बल्कि आतंकवादी हैं और तुम्हे मारने आए हैं.. इसके बाद बच्चों को मे अपनी मौत का ख़ौफ़ समा गया … अपने आपको ज़िंदा बच पाने की उम्मीद ख़त्म हो गयी.. बच्चे डर कर चिल्ला भी नही पा रहे थे क्यूँ की ऐसा करने पर उनको मारा जाता पीटा जाता…बच्चों को लगा अगर वो चिल्लाएँगे तो ये लोग उनको गोली मार देंगे

अब तक स्कूल के बाहर भीड़ लग चुकी थी…आतंकी अंदर से खड़े हो कर नगरवासियों पर कॉमेंट करते… अंडे फेंकते… हंसते.. और ये सब रात तक चलता रहा … बच्चों के उपर इनकी क्रूरता जारी रही .. रात को इन्होने बच्चों को ही कहा की वो नंगे बलात्कार किए हुए मर चुके बच्चों की लाशों को उठा कर के पीछे फेंक कर आयें इस बीच रशियन सैनिकों ने स्कूल को घेर लिया था.. .समझौते की कोशिशें जारी थी .. सैनिकों ने आतंकवादियों से खाना खाने के लिए फुड देने की बात की पर आतंकियों ने इनकार कर दिया .. क्यूँ कि उन्हे उसमे ज़हर होने का डर था इस बीच रूस की सब से अच्छी फोर्स Alpha and Vympel (Russia Special forces) आ चुकी थी ..

आतंकियों ने साफ कर दिया था की अगर गैस का इस्तेमाल हुआ आ बिजली काटी गयी तो वो तुरंत बच्चों को मार देंगे ..
आतंकवादी इन फोर्स के पहले की सारी काररवाई की छानबीन कर ली थी .. उन्होने थकान और नींद भगाने वाली दवाई amphetamines लाए थे ..
रूसी विशेष बलों ने विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हुए स्कूल पर हमला कर दिया टैंक से .. बंदूक से … विस्फोट ए .. हर तरह से हमला किया गया . स्पेशल फोर्स के कमांडो भी जान पर खेल गये ..लेकिन उस अभागे दिन सिर्फ़ रक्तपात को छोड़ कर और कुछ हासिल नही हो पाया

३३० लोग मारे गये जिस मे से १८० छोटे छोटे मासूम बच्चे थे .. बच्चों को गोली मार दी गयी थी …१८ महीने के बच्चे तक को चाकू घोंप घोंप कर मारा गया था ..२४७ बच्चे जो गंभीर रूप से घायल थे उनको इलाज के तुरंत बाद मास्को सर्जरी के लिए भेजा गया … कई फोर्स के सैनिक भी मारे गये थे… ३ दिन तक बंधक बच्चों पर ये ज़ुल्म ढाते रहे थे….

अंत में चारो तरफ बच्चों की लाशों को देख कर उनके माँ बाप के चीख पुकार और रोने की आवाज़ से पूरा इलाक़ा दहल उठा.. जो बच्चे स्कूल से निकल रहे थे सब खून से सने हुए थे.. लाशों के ढेर लगे थे

http://rt.com/news/183964-beslan-school-hostage-crisis/