भारत को अवनति के कगार पर पहुँचाने में आपसी फूट का भी कम योगदान नहीं है |
महाभारत का युद्ध आपसी फूट का ही परिणाम था | भगवान श्री कृष्ण में युद्ध
रोकने व शांति स्थापित करने की तीव्र तड़प थी, तभी तो वह कहते हैं कि
धृतराष्ट्र पुत्रों के बैर को जानता हुआ भी इस संकट में अपने को डाल रहा
है, क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि युद्ध के परिणामस्वरूप पशु सहित सब पृथ्वी
नष्ट हो जाएगी | जो इस मृत्यु पाश से पृथ्वी की रक्षा करेगा, वह महान धर्म
का कार्य करेगा | धर्म कार्य करते हुए यदि
सफलता भी न मिले तब भी पुण्य की प्राप्ति हो जाती है, इसलिए इस विनाशकारी
संग्राम से कौरव-पांडव वंश को बचाने के लिए मैं पूरा प्रयास करूँगा | श्री
कृष्ण ने आपसी फूट को प्यार में बदलने के लिए दुर्योधन को खूब समझाया,
लेकिन उसने स्पष्ट कह दिया कि मैं जानता हूँ कि धर्म क्या है, पर उसमें
मेरी प्रवृत्ति नहीं होती और मैं यह भी जानता हूँ कि अधर्म क्या है, किन्तु
उससे मेरा छुटकारा नहीं होता, इसलिए युद्ध किए बिना सुई की नोक के बराबर
भी भूमि मैं पांडवों को नहीं दूँगा।
जब आपस में भाई-भाई लड़ते हैं, तभी तीसरा विदेशी आकर पंच बन बैठता है |
आपस में फूट से कौरवों- पांडवों और यादवों का सत्यानाश हो गया | सो तो हो
गया, परन्तु अब तक भी वही रोग पीछे लगा है | न जाने यह भयंकर राक्षस कभी
छूटेगा या आर्यों को सभी सुखों से छुड़ाकर दुःख सागर में डुबो मारेगा | उसी
दुष्ट दुर्योधन, गोत्रा हत्यारे, स्वदेश विनाशक नीच के दुष्ट मार्ग पर आर्य
लोग अब तक चल कर दुःख बढ़ा रहे हैं | भारत-पाकिस्तान का मनमुटाव आज इसी तरह
का मामला है |
आपसी फूट के कारण ही भारत पर विदेशी शासन संभव हो सका | बात उन दिनों की है जब सिन्धु में हिन्दू नरेश दाहिर राज्य करते थे | उसके शासन पर एक म्लेच्छ यवन ने आक्रमण किया और लड़ाई के मैदान से म्लेच्छ के पैर उखड़ गए | जिस रात वह स्वदेश भागने को ही था कि राजपुरोहित ने यवन राज से जाकर कहा, आप मुझे सिन्धु का नरेश बनाने का वचन दें, तो मैं आपकी हार को जीत में बदल दूँगा | म्लेच्छ राजा ने हाँ कर दिया | तत्पश्चात् रात्रि में राजपुरोहित ने मंदिर पर चढ़कर मंदिर का केसरिया ध्वज झुका दिया | प्रातःकाल जो भी सैनिक उठता और मंदिर के ध्वज को झुका हुआ देखता तो कहता कि देवता नाराज हो गया, अब सिन्धु नहीं बचेगा, क्योंकि वहाँ के पंडितों ने प्रजा व सेना में यह अंधविश्वास भर दिया था कि मंदिर का ध्वज झुकने पर सिन्धु नहीं बच सकता | हुआ भी ऐसा ही | म्लेच्छ राजा ने हमला बोला, लेकिन आर्य सैनिकों ने उत्साह के साथ युद्ध में भाग नहीं लिया | दाहिर हार गया, उसे मार डाला गया और उसकी दोनों लड़कियों सूरज और परमाल को मुस्लिम खलीफा को तोहफे के तौर पर भेंट किया गया | राजपुरोहित को यह कहकर मार डाला गया कि जब तुम अपने देश के न हो सके तो हमारे कैसे हो सकते हो ? जयचन्द और पृथ्वीराज चौहान में आपसी फूट के कारण ही मुहम्मद गोरी आर्यावर्त को पराधीन करने में कामयाब रहा | यह इतिहास की प्रसिद्ध गाथा है, इसे ज्यादा लिखने की जरूरत नहीं |
जिसने भी इतिहास से शिक्षा नहीं लिया, उसका विनाश निश्चित है |
आपसी फूट के कारण ही भारत पर विदेशी शासन संभव हो सका | बात उन दिनों की है जब सिन्धु में हिन्दू नरेश दाहिर राज्य करते थे | उसके शासन पर एक म्लेच्छ यवन ने आक्रमण किया और लड़ाई के मैदान से म्लेच्छ के पैर उखड़ गए | जिस रात वह स्वदेश भागने को ही था कि राजपुरोहित ने यवन राज से जाकर कहा, आप मुझे सिन्धु का नरेश बनाने का वचन दें, तो मैं आपकी हार को जीत में बदल दूँगा | म्लेच्छ राजा ने हाँ कर दिया | तत्पश्चात् रात्रि में राजपुरोहित ने मंदिर पर चढ़कर मंदिर का केसरिया ध्वज झुका दिया | प्रातःकाल जो भी सैनिक उठता और मंदिर के ध्वज को झुका हुआ देखता तो कहता कि देवता नाराज हो गया, अब सिन्धु नहीं बचेगा, क्योंकि वहाँ के पंडितों ने प्रजा व सेना में यह अंधविश्वास भर दिया था कि मंदिर का ध्वज झुकने पर सिन्धु नहीं बच सकता | हुआ भी ऐसा ही | म्लेच्छ राजा ने हमला बोला, लेकिन आर्य सैनिकों ने उत्साह के साथ युद्ध में भाग नहीं लिया | दाहिर हार गया, उसे मार डाला गया और उसकी दोनों लड़कियों सूरज और परमाल को मुस्लिम खलीफा को तोहफे के तौर पर भेंट किया गया | राजपुरोहित को यह कहकर मार डाला गया कि जब तुम अपने देश के न हो सके तो हमारे कैसे हो सकते हो ? जयचन्द और पृथ्वीराज चौहान में आपसी फूट के कारण ही मुहम्मद गोरी आर्यावर्त को पराधीन करने में कामयाब रहा | यह इतिहास की प्रसिद्ध गाथा है, इसे ज्यादा लिखने की जरूरत नहीं |
जिसने भी इतिहास से शिक्षा नहीं लिया, उसका विनाश निश्चित है |
No comments:
Post a Comment