जंतर मंतर का निर्माण राजपूत राजा जय सिंह "द्वितीय" ने (1699-1744) में
करवाया था। यह संरचना प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की घोतक है।
जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। जिनमे राजपूतों द्वारा उत्पादित कलाओं के रूप में प्रसिद्द सुन्दर चित्र और विशिष्ट शैली को दर्शाया गया है। दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है।
जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। जिनमे राजपूतों द्वारा उत्पादित कलाओं के रूप में प्रसिद्द सुन्दर चित्र और विशिष्ट शैली को दर्शाया गया है। दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है।
मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों
की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने
जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न
प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से समय और
ग्रहों की
स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है।राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।
राजा जयसिंह द्वितीय बहुत छोटी आयु से गणित में बहुत ही अधिक रूचि रखते थे। उनकी औपचारिक पढ़ाई ११ वर्ष की आयु में छूट गयी क्योंकि उनकी पिताजी की मृत्यु के बाद उन्हें ही राजगद्दी संभालनी पड़ी थी। २५जनवरी, १७०० में गद्दी संभालने के बाद भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोडा। उन्होंने बहुत खगोल विज्ञानं और ज्योतिष का भी गहरा अध्ययन किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत से खगोल विज्ञान से सम्बंधित यंत्र एवम पुस्तकें भी एकत्र कीं। उन्होंने प्रमुख खगोलशास्त्रियों को विचार हेतु एक जगह एकत्र भी किया। हिन्दू , और यूरोपीय खगोलशास्त्री सभी ने उनके इस महान कार्य में अपना बराबर योगदान दिया।
अपने शासन काल में सन् १७२७ में,उन्होंने एक दल खगोलशास्त्र से सम्बंधित और जानकारियां और तथ्य तलाशने के लिए भारत से यूरोप भेजा था। वह दल कुछ किताबें,दस्तावेज,और यंत्र ही ले कर लौटा।
जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र,नाड़ी वलय यंत्र,दिगंश यंत्र,भित्ति यंत्र,मिस्र यंत्र,आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है।
जो खगोल यंत्र राजा जयसिंह द्वारा बनवाये गए थ, उनकी सूची इस प्रकार से है:
1- सम्राट यन्त्र
2- सस्थाम्सा
3- दक्सिनोत्तारा भित्ति यंत्र
4- जय प्रकासा और कपाला
5- नदिवालय
6- दिगाम्सा यंत्र
7- राम यंत्र
8- रसिवालाया
राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पं जगन्नाथ ने इसी विषय पर ‘यंत्र प्रकार’ तथा ‘सम्राट सिद्धांत’ नामक ग्रंथ लिखे।५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में यह वेधशालाएं बाद में बनने वाले तारामंडलों के लिए प्रेरणा और जानकारी का स्त्रोत रही हैं। हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर में स्थापित रामयंत्र के जरिए प्रमुख खगोलविद द्वारा विज्ञान दिवस पर आसमान के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र की स्थिति नापी गयी थी। इस अध्ययन में नेहरू तारामंडल के खगोलविदों के अलावा एमेच्योर एस्ट्रोनामर्स एसोसिएशन और गैर सरकारी संगठन स्पेस के सदस्य भी शामिल थे।
स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है।राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।
राजा जयसिंह द्वितीय बहुत छोटी आयु से गणित में बहुत ही अधिक रूचि रखते थे। उनकी औपचारिक पढ़ाई ११ वर्ष की आयु में छूट गयी क्योंकि उनकी पिताजी की मृत्यु के बाद उन्हें ही राजगद्दी संभालनी पड़ी थी। २५जनवरी, १७०० में गद्दी संभालने के बाद भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोडा। उन्होंने बहुत खगोल विज्ञानं और ज्योतिष का भी गहरा अध्ययन किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत से खगोल विज्ञान से सम्बंधित यंत्र एवम पुस्तकें भी एकत्र कीं। उन्होंने प्रमुख खगोलशास्त्रियों को विचार हेतु एक जगह एकत्र भी किया। हिन्दू , और यूरोपीय खगोलशास्त्री सभी ने उनके इस महान कार्य में अपना बराबर योगदान दिया।
अपने शासन काल में सन् १७२७ में,उन्होंने एक दल खगोलशास्त्र से सम्बंधित और जानकारियां और तथ्य तलाशने के लिए भारत से यूरोप भेजा था। वह दल कुछ किताबें,दस्तावेज,और यंत्र ही ले कर लौटा।
जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र,नाड़ी वलय यंत्र,दिगंश यंत्र,भित्ति यंत्र,मिस्र यंत्र,आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है।
जो खगोल यंत्र राजा जयसिंह द्वारा बनवाये गए थ, उनकी सूची इस प्रकार से है:
1- सम्राट यन्त्र
2- सस्थाम्सा
3- दक्सिनोत्तारा भित्ति यंत्र
4- जय प्रकासा और कपाला
5- नदिवालय
6- दिगाम्सा यंत्र
7- राम यंत्र
8- रसिवालाया
राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पं जगन्नाथ ने इसी विषय पर ‘यंत्र प्रकार’ तथा ‘सम्राट सिद्धांत’ नामक ग्रंथ लिखे।५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में यह वेधशालाएं बाद में बनने वाले तारामंडलों के लिए प्रेरणा और जानकारी का स्त्रोत रही हैं। हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर में स्थापित रामयंत्र के जरिए प्रमुख खगोलविद द्वारा विज्ञान दिवस पर आसमान के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र की स्थिति नापी गयी थी। इस अध्ययन में नेहरू तारामंडल के खगोलविदों के अलावा एमेच्योर एस्ट्रोनामर्स एसोसिएशन और गैर सरकारी संगठन स्पेस के सदस्य भी शामिल थे।
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