मुस्लिम
शासक बाबर 1527 में फरगना से आया था।उसने चित्तौरगढ़ के हिंदू राजा राणा
संग्राम सिंह को फतेहपुर सिकरी में परास्त कर दिया. बाबर नेअपने युद्ध में
तोपों और गोलों का इस्तेमाल किया।
जीत के बाद बाबर ने इस क्षेत्र का प्रभार मीर बांकी को दे दिया. मीर बांकी ने उस क्षेत्रमें मुस्लिम शासन लागू कर दिया. उसने आम नागरिकों को नियंत्रित करने के लिए आतंक का सहारा लिया।
मीर बांकी 1528 में अयोध्या आया और मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया, .
कुछ तथ्य- एक नजर में अयोध्या पर मुकदमा ६० साल से अधिक समय तकचला। माना जा रहा है कि अपने आप में पहला ऐसा संवेदनशील मुकदमा रहा जिसको निपटाने में इतना लम्बा समय लगा। इसमें कुल ८२ गवाह पेश हुए। हिन्दू पक्ष की ओरसे ५४ गवाह और मुस्लिम पक्ष की ओर से २८ गवाह पेश किये गये।
हिन्दुओं की गवाही ७१२८ पृष्ठों में लिपि बद्ध की गयी जबकि मुसलमानों की गवाही ३३४३पृष्ठों में कलमबद्ध हुई। पुरातात्विक महत्व के मुद्दों पर हिन्दुओं की ओर से चार गवाह और मुसलमानों की ओर से आठ गवाह पेश हुए।
इस मामले में हिन्दू पक्ष की गवाही १२०९ तथा मुस्लिम पक्ष की गवाही २३११ पृष्ठ में दर्ज की गयी। हिन्दुओं की ओर से अन्य सबूतों के अलावा जिन साक्ष्यों का संदर्भ दिया गया उनमें अथर्ववेद,स्कन्द पुराण, नरसिंह पुराण, बाल्मीकि रामायण,रामचरित मानस, केनोपनिषद और गजेटियर आदि हैं।
मुस्लिम पक्ष की ओर से राजस्व रिकार्डों के अलावा बाबरनामा, हुमायूंनामा, तुजुक-ए-जहांगीरी, तारीख-ए-बदायूंनी, तारीख-ए-फरिश्ता, आइना-ए-अकबरी आदि का हवाला दिया गया।
पूरा फैसला ८१८९ पृष्ठों में समाहित है।
अयोध्या की स्थापना - वैवस्वत मनु महाराजद्वारा सरयू तट परअयोध्या की स्थापना की गई। मनु उन १४मनवंतरों के उद्गाता हैं जिनसे मिलकर कल्प बना है।वर्तमान में ७वां मनवंतर चल रहा है।भगवान श्रीराम का जन्म - भगवान विष्णु केअवतार श्रीराम का जन्म त्रेता युग में अयोध्या मेंहुआ।
श्रीराम मंदिर - श्रीराम जन्म भूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए २१०० साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले ८४ स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर का ध्वंस - मीर बाकी मुस्लिम आक्रांता बाबर का सेनापति था, जिसने १५२८ ईस्वी में भगवान श्रीराम का यह विशाल मंदिर ध्वस्त किया।
पहला १५ दिवसीय संघर्ष -इस्लामी आक्रमण कारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने १५ दिन तक लगातार संघर्षकिया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई नकर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया।
इस संघर्ष में १,७६,००० रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी।
ढांचे का निर्माण - ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके।
संघर्ष - १५२८ से १९४९ ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्म भूमिस्थल पर मंदिर निर्माण हेतु ७६संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु महारानी राजकुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।रामलला प्रकट हुए - २२ दिसम्बर १९४९ की मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला प्रकट हुए।
वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। उससमय भारत के प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे।
मंदिर पर ताला - कानून और व्यवस्था बनाएरखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचेको आपराधिक दंड संहिता की धारा १४५ के तहतरखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए, लेकिन एक पुजारी को दिन में दो बारढांचे के अंदर जाकर दैनिक पूजा और अन्य अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति दी।श्रद्धालुओं को तालाबंद द्वार तक जाकर दर्शनकी अनुमति थी। ताला लगे दरवाजों के सामने स्थानीय श्रद्धालुओं और संतों ने "श्रीराम जय रामजय जय राम" का अखंड संकीर्तन आरंभ कर दिया।
मंदिर बनाने का संकल्प - पश्चिमी उत्तर प्रदेश केएक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री दाऊ दयालखन्ना ने मार्च, १९८३ में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी केस्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया।
दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारी लालनंदा भी मंच पर उपस्थित थे।पहली धर्म संसद - अप्रैल, १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) मेंआयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार सेताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करनेका प्रस्ताव पारित किया।
राम जानकी रथ यात्रा - विश्व हिन्दू परिषद्ने अक्टूबर, १९८४ में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की।लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्ममहत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएंरोकनी पड़ी थीं।अक्टूबर, १९८५ में रथ यात्राएं पुन:प्रारंभ हुईं।
ताला खुला - इन रथ यात्राआें से हिन्दू समाज में ऐसा प्रबल उत्साह जगा कि फैजाबाद के जिला दंडाधिकारी ने १ फ़रवरी १९८६को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के द्वार परलगा ताला खोलने का आदेश दिया।उस समयउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे श्री वीर बहादुर सिंह और देश के प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।
श्रीराम मंदिर का प्रारूप - गुजरात के सुप्रसिद्ध मंदिर शिल्पकार श्री चंद्रकांत भाई सोमपुरा द्वारा प्रस्तावित मंदिर का रेखाचित्र तैयार किया गया। श्री चंद्रकांत केदादा पद्मश्री पी.ओ.सोमपुरा ने वर्तमानसोमनाथ मंदिर का प्रारूप भी बनाया था।
रामशिला पूजन - जनवरी, १९८९ में प्रयागराज में कुंभ मेले के पवित्र अवसर पर त्रिवेणी के किनारे विश्व हिन्दू परिषद् ने धर्म संसद का आयोजनकिया। इसमें पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति में तय किया गया कि देश के हर मंदिर- हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किया जाए।पहली शिला का पूजनश्री बद्रीनाथ धाम में किया गया। देश और विदेशसे ऐसी २,७५,००० रामशिलाएं अक्टूबर, १९८९ के अंततक अयोध्या पहुंच गईं।इस कार्यक्रम में ६ करोड़लोगों ने भाग लिया।मंदिर का शिलान्यास - ९ नवम्बर १९८९को बिहार के वंचित वर्ग के एक बंधु श्री कामेश्वरचौपाल द्वारा शिलान्यास किया गया। उससमय श्री नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश केमुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री थे श्री राजीवगांधी।कारसेवा का आह्वान - २४ जून १९९० को संतों नेदेवोत्थान एकादशी (३० अक्टूबर १९९०) से मंदिरनिर्माण हेतु कारसेवा शुरू करने का आह्वान किया।राम ज्योति - अयोध्या में अरणि मंथन से एकज्योति प्रज्ज्वलित की गई। यह "राम ज्योति" देशभर में प्रत्येक हिन्दू घर में पहुंची और सबने मिलकर इसज्योति से दीपावली मनाई।
हिन्दुत्व की विजय - ३० अक्टूबर १९९०को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्ववाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार करअयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे केऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया।
कारसेवकों का बलिदान - २ नवम्बर १९९०को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों परगोली चलाने का आदेश दिया, जिसमेंकोलकाता के राम कोठारी और शरदकोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्तों नेअपने जीवन की आहुतियां दीं।
ऐतिहासिक रैली - ४ अप्रैल १९९१ को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई।इसी दिन कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश केतत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नेइस्तीफा दिया।रामपादुका पूजन - सितम्बर, १९९२ में भारत केगांव-गांव में श्री राम पादुका पूजन का आयोजनकिया गया और गीता जयंती (६ दिसम्बर १९९२) केदिन रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वानकिया गया।अपमान का प्रतीक ध्वस्त - लाखों राम भक्त ६दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और रामजन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गएअपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त करदिया।मंदिर के अवशेष मिले - ध्वस्त ढांचेकी दीवारों से ५ फुट लंबी और २.२५ फुटचौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों नेबताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत मेंलिखीं २० पंक्तियां उत्कीर्ण थीं।पहली पंक्ति की शुरुआत "ओम नम: शिवाय" सेहोती है। १५वीं, १७वीं और १९वीं पंक्तियां स्पष्टतौर पर बताती हैं कि यह मंदिर "दशानन (रावण) केसंहारक विष्णु हरि" को समर्पित है। मलबे से करीबढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईंजो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।वर्तमान स्वरूप - कारसेवकों द्वारा तिरपालकी मदद से अस्थायी मंदिर का निर्माणकिया गया। यह मंदिर उसी स्थान परबनाया गया जहां ध्वंस से पहले श्रीरामलला विराजमान थे। श्री पी.वी.नरसिंहराव के नेतृत्व वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार के एकअध्यादेश द्वारा श्रीरामलला की सुरक्षा केनाम पर लगभग ६७ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई।यह अध्यादेश संसद ने ७ जनवरी १९९३ को एक कानूनके जरिए पारित किया था।दर्शन-पूजन निविर्घ्न -भक्तों द्वारा श्रीरामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध मेंअधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्चन्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायरकी। १ जनवरी १९९३ को अनुमति दे दी गई। तब सेदर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है।राष्ट्रपति का प्रश्न - भारत के तत्कालीनराष्ट्रपति डॉ॰शंकर दयाल शर्मा ने संविधानकी धारा १४३(ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालयको एक प्रश्न "रेफर" किया। प्रश्न था, "क्या जिसस्थान पर ढांचा खड़ा था वहां रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दूमंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी?"सर्वोच्च न्यायालय ने कहा - सर्वोच्चन्यायालय ने करीब २० महीने सुनवाई की और २४अक्टूबर १९९४ को अपने निर्णय में कहा-इलाहाबादउच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ विवादितस्थल के स्वामित्व का निर्णय करेगी औरराष्ट्रपति द्वारा दिए गए विशेष "रेफरेंस"का जवाब देगी।लखनऊ खण्डपीठ - तीनन्यायमूर्तियों (दो हिन्दू और एक मुस्लिम)की पूर्ण पीठ ने १९९५ में मामले की सुनवाई शुरू की।मुद्दों का पुनर्नियोजन किया गया। मौखिकसाक्ष्यों को रिकार्ड करना शुरू किया गया।भूगर्भीय सर्वेक्षण - अगस्त, २००२ में राष्ट्रपति केविशेष "रेफरेंस" का सीधा जवाब तलाशने के लिएउक्त पीठ ने उक्त स्थल पर "ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडारसर्वे" का आदेश दिया जिसे कनाडा से आएविशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनलद्वारा किया गया। अपनी रपट में विशेषज्ञों नेध्वस्त ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशालढांचे के मौजूद होने का उल्लेखकिया जो वैज्ञानिक तौर पर साबितकरता था कि बाबरी ढांचा किसी खाली जगहपर नहीं बनाया गया था, जैसा कि सुन्नी वक्फबोर्ड ने दिसम्बर, १९६१ में फैजाबाद केदीवानी दंडाधिकारी के सामने दायर अपने मुकदमेमें दावा किया है। विशेषज्ञों ने वैज्ञानिकउत्खनन के जरिए जीपीआरएस रपट की सत्यता हेतुअपना मंतव्य भी दिया।खुदाई - २००३ में उच्च न्यायालय ने भारतीयपुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर उस स्थलकी खुदाई करने और जीपीआरएस रपटको सत्यापित करने का आदेश दिया। अदालतद्वारा नियुक्त दो पर्यवेक्षकों (फैजाबाद केदो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी)की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों,उनके वकीलों, उनकेविशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई केदौरान वहां बराबर उपस्थित रहनेकी अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिएआदेश दिया गया कि श्रमिकों में ४० प्रतिशतमुस्लिम होंगे।मंदिर के साक्ष्य मिले - भारतीय पुरातत्वसर्वेक्षण द्वारा हर मिनटकी वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रणकिया गया। यह खुदाई आंखें खोल देने वाली थी।कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी परस्थित ५० जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारेंपायी गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाईदिया। जीपीआरएस रपट और भारतीय सर्वेक्षणविभाग की रपट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड मेंदर्ज हैं।
कानूनी प्रक्रिया पूरी - करीब ६०सालों (जिला न्यायालय में ४० साल और उच्चन्यायालय में २० साल) की सुनवाई के बाद इसमामले में न्यायालय की प्रक्रिया अबपूरी हो गई।राम मंदिर के निर्माण में हो रही देरी को देखतेहुए पुन: जनजागरण हेतु - ५ अप्रैल २०१० को हरिद्वारकुंभ मेला में संतों और धर्माचार्यों ने अपनी बैठक मेंश्री हनुमत शक्ति जागरण समिति के तत्वावधान मेंतुलसी जयंती (१६ अगस्त २०१०) से अक्षय नवमी (१६नवम्बर २०१०) तक देश भर में हनुमान चालीसा पाठकरने की घोषणा की। प्रत्येक प्रखंड में देवोत्थानएकादशी (१७ नवम्बर २०१०) से गीता जयंती (१६दिसम्बर २०१०) तक श्री हनुमत शक्ति जागरणमहायज्ञ संपन्न होंगे। ये सभी यज्ञ भारत में लगभगआठ हजार स्थानों पर आयोजित किए जाएंगे।ऐतिहासिक दिन - ३० सितम्बर २०१०को अयोध्या आंदोलन के इतिहासका ऐतिहासिक दिन माना जाएगा।इसी दिनइलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठने विवादित ढांचे के संबंध में निर्णय सुनाया।
न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीरअग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एस.यू. खान ने एकमत सेमाना कि जहां रामलला विराजमान हैं,वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
ऐतिहासिक निर्णय - उक्त तीनों माननीयन्यायधीशों ने अपने निर्णय में यहभी कहा कि जो विवादित ढांचा था वह एक बड़े भग्नावशेष पर खड़ा था।
न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि वह १२वीं शताब्दी के राम मंदिरको तोड़कर बनाया गया था, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि वह किसी बड़े हिन्दू धर्मस्थानको तोड़कर बनाया गया और न्यायमूर्ति खान नेकहा कि वह किसी पुराने ढांचे पर बना। परकिसी भी न्यायमूर्ति ने उस ढांचे को मस्जिद नहीं माना। सभी ने उस स्थानको रामजन्मभूमि ही माना।
जय श्री राम
जीत के बाद बाबर ने इस क्षेत्र का प्रभार मीर बांकी को दे दिया. मीर बांकी ने उस क्षेत्रमें मुस्लिम शासन लागू कर दिया. उसने आम नागरिकों को नियंत्रित करने के लिए आतंक का सहारा लिया।
मीर बांकी 1528 में अयोध्या आया और मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया, .
कुछ तथ्य- एक नजर में अयोध्या पर मुकदमा ६० साल से अधिक समय तकचला। माना जा रहा है कि अपने आप में पहला ऐसा संवेदनशील मुकदमा रहा जिसको निपटाने में इतना लम्बा समय लगा। इसमें कुल ८२ गवाह पेश हुए। हिन्दू पक्ष की ओरसे ५४ गवाह और मुस्लिम पक्ष की ओर से २८ गवाह पेश किये गये।
हिन्दुओं की गवाही ७१२८ पृष्ठों में लिपि बद्ध की गयी जबकि मुसलमानों की गवाही ३३४३पृष्ठों में कलमबद्ध हुई। पुरातात्विक महत्व के मुद्दों पर हिन्दुओं की ओर से चार गवाह और मुसलमानों की ओर से आठ गवाह पेश हुए।
इस मामले में हिन्दू पक्ष की गवाही १२०९ तथा मुस्लिम पक्ष की गवाही २३११ पृष्ठ में दर्ज की गयी। हिन्दुओं की ओर से अन्य सबूतों के अलावा जिन साक्ष्यों का संदर्भ दिया गया उनमें अथर्ववेद,स्कन्द पुराण, नरसिंह पुराण, बाल्मीकि रामायण,रामचरित मानस, केनोपनिषद और गजेटियर आदि हैं।
मुस्लिम पक्ष की ओर से राजस्व रिकार्डों के अलावा बाबरनामा, हुमायूंनामा, तुजुक-ए-जहांगीरी, तारीख-ए-बदायूंनी, तारीख-ए-फरिश्ता, आइना-ए-अकबरी आदि का हवाला दिया गया।
पूरा फैसला ८१८९ पृष्ठों में समाहित है।
अयोध्या की स्थापना - वैवस्वत मनु महाराजद्वारा सरयू तट परअयोध्या की स्थापना की गई। मनु उन १४मनवंतरों के उद्गाता हैं जिनसे मिलकर कल्प बना है।वर्तमान में ७वां मनवंतर चल रहा है।भगवान श्रीराम का जन्म - भगवान विष्णु केअवतार श्रीराम का जन्म त्रेता युग में अयोध्या मेंहुआ।
श्रीराम मंदिर - श्रीराम जन्म भूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए २१०० साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले ८४ स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर का ध्वंस - मीर बाकी मुस्लिम आक्रांता बाबर का सेनापति था, जिसने १५२८ ईस्वी में भगवान श्रीराम का यह विशाल मंदिर ध्वस्त किया।
पहला १५ दिवसीय संघर्ष -इस्लामी आक्रमण कारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने १५ दिन तक लगातार संघर्षकिया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई नकर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया।
इस संघर्ष में १,७६,००० रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी।
ढांचे का निर्माण - ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके।
संघर्ष - १५२८ से १९४९ ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्म भूमिस्थल पर मंदिर निर्माण हेतु ७६संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु महारानी राजकुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।रामलला प्रकट हुए - २२ दिसम्बर १९४९ की मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला प्रकट हुए।
वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। उससमय भारत के प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे।
मंदिर पर ताला - कानून और व्यवस्था बनाएरखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचेको आपराधिक दंड संहिता की धारा १४५ के तहतरखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए, लेकिन एक पुजारी को दिन में दो बारढांचे के अंदर जाकर दैनिक पूजा और अन्य अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति दी।श्रद्धालुओं को तालाबंद द्वार तक जाकर दर्शनकी अनुमति थी। ताला लगे दरवाजों के सामने स्थानीय श्रद्धालुओं और संतों ने "श्रीराम जय रामजय जय राम" का अखंड संकीर्तन आरंभ कर दिया।
मंदिर बनाने का संकल्प - पश्चिमी उत्तर प्रदेश केएक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री दाऊ दयालखन्ना ने मार्च, १९८३ में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी केस्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया।
दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारी लालनंदा भी मंच पर उपस्थित थे।पहली धर्म संसद - अप्रैल, १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) मेंआयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार सेताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करनेका प्रस्ताव पारित किया।
राम जानकी रथ यात्रा - विश्व हिन्दू परिषद्ने अक्टूबर, १९८४ में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की।लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्ममहत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएंरोकनी पड़ी थीं।अक्टूबर, १९८५ में रथ यात्राएं पुन:प्रारंभ हुईं।
ताला खुला - इन रथ यात्राआें से हिन्दू समाज में ऐसा प्रबल उत्साह जगा कि फैजाबाद के जिला दंडाधिकारी ने १ फ़रवरी १९८६को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के द्वार परलगा ताला खोलने का आदेश दिया।उस समयउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे श्री वीर बहादुर सिंह और देश के प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।
श्रीराम मंदिर का प्रारूप - गुजरात के सुप्रसिद्ध मंदिर शिल्पकार श्री चंद्रकांत भाई सोमपुरा द्वारा प्रस्तावित मंदिर का रेखाचित्र तैयार किया गया। श्री चंद्रकांत केदादा पद्मश्री पी.ओ.सोमपुरा ने वर्तमानसोमनाथ मंदिर का प्रारूप भी बनाया था।
रामशिला पूजन - जनवरी, १९८९ में प्रयागराज में कुंभ मेले के पवित्र अवसर पर त्रिवेणी के किनारे विश्व हिन्दू परिषद् ने धर्म संसद का आयोजनकिया। इसमें पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति में तय किया गया कि देश के हर मंदिर- हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किया जाए।पहली शिला का पूजनश्री बद्रीनाथ धाम में किया गया। देश और विदेशसे ऐसी २,७५,००० रामशिलाएं अक्टूबर, १९८९ के अंततक अयोध्या पहुंच गईं।इस कार्यक्रम में ६ करोड़लोगों ने भाग लिया।मंदिर का शिलान्यास - ९ नवम्बर १९८९को बिहार के वंचित वर्ग के एक बंधु श्री कामेश्वरचौपाल द्वारा शिलान्यास किया गया। उससमय श्री नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश केमुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री थे श्री राजीवगांधी।कारसेवा का आह्वान - २४ जून १९९० को संतों नेदेवोत्थान एकादशी (३० अक्टूबर १९९०) से मंदिरनिर्माण हेतु कारसेवा शुरू करने का आह्वान किया।राम ज्योति - अयोध्या में अरणि मंथन से एकज्योति प्रज्ज्वलित की गई। यह "राम ज्योति" देशभर में प्रत्येक हिन्दू घर में पहुंची और सबने मिलकर इसज्योति से दीपावली मनाई।
हिन्दुत्व की विजय - ३० अक्टूबर १९९०को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्ववाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार करअयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे केऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया।
कारसेवकों का बलिदान - २ नवम्बर १९९०को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों परगोली चलाने का आदेश दिया, जिसमेंकोलकाता के राम कोठारी और शरदकोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्तों नेअपने जीवन की आहुतियां दीं।
ऐतिहासिक रैली - ४ अप्रैल १९९१ को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई।इसी दिन कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश केतत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नेइस्तीफा दिया।रामपादुका पूजन - सितम्बर, १९९२ में भारत केगांव-गांव में श्री राम पादुका पूजन का आयोजनकिया गया और गीता जयंती (६ दिसम्बर १९९२) केदिन रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वानकिया गया।अपमान का प्रतीक ध्वस्त - लाखों राम भक्त ६दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और रामजन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गएअपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त करदिया।मंदिर के अवशेष मिले - ध्वस्त ढांचेकी दीवारों से ५ फुट लंबी और २.२५ फुटचौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों नेबताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत मेंलिखीं २० पंक्तियां उत्कीर्ण थीं।पहली पंक्ति की शुरुआत "ओम नम: शिवाय" सेहोती है। १५वीं, १७वीं और १९वीं पंक्तियां स्पष्टतौर पर बताती हैं कि यह मंदिर "दशानन (रावण) केसंहारक विष्णु हरि" को समर्पित है। मलबे से करीबढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईंजो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।वर्तमान स्वरूप - कारसेवकों द्वारा तिरपालकी मदद से अस्थायी मंदिर का निर्माणकिया गया। यह मंदिर उसी स्थान परबनाया गया जहां ध्वंस से पहले श्रीरामलला विराजमान थे। श्री पी.वी.नरसिंहराव के नेतृत्व वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार के एकअध्यादेश द्वारा श्रीरामलला की सुरक्षा केनाम पर लगभग ६७ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई।यह अध्यादेश संसद ने ७ जनवरी १९९३ को एक कानूनके जरिए पारित किया था।दर्शन-पूजन निविर्घ्न -भक्तों द्वारा श्रीरामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध मेंअधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्चन्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायरकी। १ जनवरी १९९३ को अनुमति दे दी गई। तब सेदर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है।राष्ट्रपति का प्रश्न - भारत के तत्कालीनराष्ट्रपति डॉ॰शंकर दयाल शर्मा ने संविधानकी धारा १४३(ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालयको एक प्रश्न "रेफर" किया। प्रश्न था, "क्या जिसस्थान पर ढांचा खड़ा था वहां रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दूमंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी?"सर्वोच्च न्यायालय ने कहा - सर्वोच्चन्यायालय ने करीब २० महीने सुनवाई की और २४अक्टूबर १९९४ को अपने निर्णय में कहा-इलाहाबादउच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ विवादितस्थल के स्वामित्व का निर्णय करेगी औरराष्ट्रपति द्वारा दिए गए विशेष "रेफरेंस"का जवाब देगी।लखनऊ खण्डपीठ - तीनन्यायमूर्तियों (दो हिन्दू और एक मुस्लिम)की पूर्ण पीठ ने १९९५ में मामले की सुनवाई शुरू की।मुद्दों का पुनर्नियोजन किया गया। मौखिकसाक्ष्यों को रिकार्ड करना शुरू किया गया।भूगर्भीय सर्वेक्षण - अगस्त, २००२ में राष्ट्रपति केविशेष "रेफरेंस" का सीधा जवाब तलाशने के लिएउक्त पीठ ने उक्त स्थल पर "ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडारसर्वे" का आदेश दिया जिसे कनाडा से आएविशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनलद्वारा किया गया। अपनी रपट में विशेषज्ञों नेध्वस्त ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशालढांचे के मौजूद होने का उल्लेखकिया जो वैज्ञानिक तौर पर साबितकरता था कि बाबरी ढांचा किसी खाली जगहपर नहीं बनाया गया था, जैसा कि सुन्नी वक्फबोर्ड ने दिसम्बर, १९६१ में फैजाबाद केदीवानी दंडाधिकारी के सामने दायर अपने मुकदमेमें दावा किया है। विशेषज्ञों ने वैज्ञानिकउत्खनन के जरिए जीपीआरएस रपट की सत्यता हेतुअपना मंतव्य भी दिया।खुदाई - २००३ में उच्च न्यायालय ने भारतीयपुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर उस स्थलकी खुदाई करने और जीपीआरएस रपटको सत्यापित करने का आदेश दिया। अदालतद्वारा नियुक्त दो पर्यवेक्षकों (फैजाबाद केदो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी)की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों,उनके वकीलों, उनकेविशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई केदौरान वहां बराबर उपस्थित रहनेकी अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिएआदेश दिया गया कि श्रमिकों में ४० प्रतिशतमुस्लिम होंगे।मंदिर के साक्ष्य मिले - भारतीय पुरातत्वसर्वेक्षण द्वारा हर मिनटकी वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रणकिया गया। यह खुदाई आंखें खोल देने वाली थी।कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी परस्थित ५० जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारेंपायी गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाईदिया। जीपीआरएस रपट और भारतीय सर्वेक्षणविभाग की रपट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड मेंदर्ज हैं।
कानूनी प्रक्रिया पूरी - करीब ६०सालों (जिला न्यायालय में ४० साल और उच्चन्यायालय में २० साल) की सुनवाई के बाद इसमामले में न्यायालय की प्रक्रिया अबपूरी हो गई।राम मंदिर के निर्माण में हो रही देरी को देखतेहुए पुन: जनजागरण हेतु - ५ अप्रैल २०१० को हरिद्वारकुंभ मेला में संतों और धर्माचार्यों ने अपनी बैठक मेंश्री हनुमत शक्ति जागरण समिति के तत्वावधान मेंतुलसी जयंती (१६ अगस्त २०१०) से अक्षय नवमी (१६नवम्बर २०१०) तक देश भर में हनुमान चालीसा पाठकरने की घोषणा की। प्रत्येक प्रखंड में देवोत्थानएकादशी (१७ नवम्बर २०१०) से गीता जयंती (१६दिसम्बर २०१०) तक श्री हनुमत शक्ति जागरणमहायज्ञ संपन्न होंगे। ये सभी यज्ञ भारत में लगभगआठ हजार स्थानों पर आयोजित किए जाएंगे।ऐतिहासिक दिन - ३० सितम्बर २०१०को अयोध्या आंदोलन के इतिहासका ऐतिहासिक दिन माना जाएगा।इसी दिनइलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठने विवादित ढांचे के संबंध में निर्णय सुनाया।
न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीरअग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एस.यू. खान ने एकमत सेमाना कि जहां रामलला विराजमान हैं,वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
ऐतिहासिक निर्णय - उक्त तीनों माननीयन्यायधीशों ने अपने निर्णय में यहभी कहा कि जो विवादित ढांचा था वह एक बड़े भग्नावशेष पर खड़ा था।
न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि वह १२वीं शताब्दी के राम मंदिरको तोड़कर बनाया गया था, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि वह किसी बड़े हिन्दू धर्मस्थानको तोड़कर बनाया गया और न्यायमूर्ति खान नेकहा कि वह किसी पुराने ढांचे पर बना। परकिसी भी न्यायमूर्ति ने उस ढांचे को मस्जिद नहीं माना। सभी ने उस स्थानको रामजन्मभूमि ही माना।
जय श्री राम
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