Sunday, January 11, 2015

हमारे विद्यालयों में हमे ये सब क्यों नहीं पढ़ाया गया ?


१. विश्व का पहले लेखन कार्य का प्रमाण 5500 वर्ष पूर्व हडप्पा संस्कृति के अन्तर्गत मिलता है। (Science Reporter, June 1999)

२. संस्कृत दुनिया की सबसे पहली भाषा है तथा यह सभी यूरोपियन भाषाओं की जननी है। संस्कृत ही कम्प्यूटर सॉप्टवेयर हेतु सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है।(Forbes Magazine, July 1987)

३. विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला के रूप में 700 ई. पू. भारत में कार्यरत था। जहाँ पर दुनिया भर के 10,500 विद्यार्थी 60 विषयों का अध्ययन करते थे।

४. बारूद की खोज 8000 ई. पू. सर्वप्रथम भारत में हुई थी।

५. वनस्पतिशास्त्र की उत्पत्ति सर्वप्रथम भारत में हुई, जिसका प्रमाण वेदों में सुनियोजित रूप से वर्गीकृत विभिन्न वनस्पतियों से मिलता है।

६. दुनिया की सबसे पहली सुनियोजित आवासीय सभ्यता हडप्पा और मोहन जोदडो के रूप में 2500 ई. पू. भारत में स्थापित हुई।

७. सूर्य से पृथिवी पर पहुँचने वाले प्रकाश की गणना भास्कराचार्य ने सर्वप्रथम भारत में की।

८. यूरोपीय गणितज्ञों से पूर्व ही छठी शताब्दी में बौधायन ने पाई के मान की गणना की थी जो कि पाइथागोरस प्रमेय के रूप में जाना जाता है।

९. 5000 ई. पू. ही भारतीयों को 10 अंक तक गणना करने का ज्ञान प्राप्त था, जबकि आज भी 10 (टेरा ) तक ही गणना की जाती है।

यह तो केवल कुछ ही अंश है ।
 
Photo: हमारे विद्यालयों में हमे ये सब क्यों नहीं पढ़ाया गया ?
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१. विश्व का पहले लेखन कार्य का प्रमाण 5500 वर्ष पूर्व हडप्पा संस्कृति के अन्तर्गत मिलता है। (Science Reporter, June 1999)

२. संस्कृत दुनिया की सबसे पहली भाषा है तथा यह सभी यूरोपियन भाषाओं की जननी है। संस्कृत ही कम्प्यूटर सॉप्टवेयर हेतु सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है।(Forbes Magazine, July 1987)

३. विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला के रूप में 700 ई. पू. भारत में कार्यरत था। जहाँ पर दुनिया भर के 10,500 विद्यार्थी 60 विषयों का अध्ययन करते थे।

४. बारूद की खोज 8000 ई. पू. सर्वप्रथम भारत में हुई थी।

५. वनस्पतिशास्त्र की उत्पत्ति सर्वप्रथम भारत में हुई, जिसका प्रमाण वेदों में सुनियोजित रूप से वर्गीकृत विभिन्न वनस्पतियों से मिलता है।

६. दुनिया की सबसे पहली सुनियोजित आवासीय सभ्यता हडप्पा और मोहन जोदडो के रूप में 2500 ई. पू. भारत में स्थापित हुई।

७. सूर्य से पृथिवी पर पहुँचने वाले प्रकाश की गणना भास्कराचार्य ने सर्वप्रथम भारत में की।

८. यूरोपीय गणितज्ञों से पूर्व ही छठी शताब्दी में बौधायन ने पाई के मान की गणना की थी जो कि पाइथागोरस प्रमेय के रूप में जाना जाता है।

९. 5000 ई. पू. ही भारतीयों को 10 अंक तक गणना करने का ज्ञान प्राप्त था, जबकि आज भी 10 (टेरा ) तक ही गणना की जाती है।

यह तो केवल कुछ ही अंश है ।

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