Sunday, January 11, 2015

बाबर ने किस के नाम पे बनाया बाबरी ढांचा


खुद बाबर के लिखे बाबरनामा से यह पता चलता है कि राम मंदिर तोड़कर उसके नाम पर बनाया गया ढांचा असल में मस्जिद ही नहीं था! बाबर एक समलैंगिक (homosexual), नशेड़ी, शराबी, और बाल उत्पीड़क (child molester) था! बाबरी मस्जिद असलियत में बाबर के पुरुष आशिक “बाबरी” के नाम पर था! यह सिद्ध हो गया है कि बाबरी मस्जिद कोई इबादतघर नहीं लेकिन समलैंगिकता और बाल उत्पीडन का प्रतीक जरूर थी

बाबरनामा के विभिन्न पृष्ठों से लिए गए निम्नलिखित अंश पढ़िए:
• पृष्ठ १२०-१२१ पर बाबर लिखता है कि वह अपनी पत्नी में अधिक रूचि नहीं लेता था बल्कि वह तो बाबरी नाम के एक लड़के का दीवाना था. वह लिखता है कि उसने कभी किसी को इतना प्यार नहीं किया कि जितना दीवानापन उसे उस लड़के के लिए था. यहाँ तक कि वह उस लड़के पर शायरी भी करता था. उदाहरण के लिए- “मुझ सा दर्दीला, जुनूनी और बेइज्जत आशिक और कोई नहीं है. और मेरे आशिक जैसा बेदर्द और तड़पाने वाला भी कोई और नहीं है.”

• बाबर लिखता है कि जब बाबरी उसके ‘करीब’ आता था तो बाबर इतना रोमांचित हो जाता था कि उसके मुंह से शब्द भी नहीं निकलते थे. इश्क के नशे और उत्तेजना में वह बाबरी को उसके प्यार के लिए धन्यवाद देने को भी मुंह नहीं खोल पता था.

• एक बार बाबर अपने दोस्तों के साथ एक गली से गुजर रहा था तो अचानक उसका सामना बाबरी से हो गया! बाबर इससे इतना उत्तेजित हो गया कि बोलना बंद हो गया, यहाँ तक कि बाबरी के चेहरे पर नजर डालना भी नामुमकिन हो गया. वह लिखता है- “मैं अपने आशिक को देखकर शर्म से डूब जाता हूँ. मेरे दोस्तों की नजर मुझ पर टिकी होती है और मेरी किसी और पर.” स्पष्ट है की ये सब साथी मिलकर क्या गुल खिलाते थे!

• बाबर लिखता है कि बाबरी के जूनून और चाह में वह बिना कुछ देखे पागलों की तरह नंगे सिर और नागे पाँव इधर उधर घूमता रहता था.

• वह लिखता है- “मैं उत्तेजना और रोमांच से पागल हो जाता था. मुझे नहीं पता था कि आशिकों को यह सब सहना होता है. ना मैं तुमसे दूर जा सकता हूँ और न उत्तेजना की वजह से तुम्हारे पास ठहर सकता हूँ. ओ मेरे आशिक (पुरुष)! तुमने मुझे बिलकुल पागल बना दिया है”.

आप भी बाबरनामा को यहाँ पढ़ सकते हैं
http://www.archive.org/details/baburnama017152mbp
 
Photo: बाबर ने किस के नाम पे बनाया बाबरी ढांचा 
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खुद बाबर के लिखे बाबरनामा से यह पता चलता है कि राम मंदिर तोड़कर उसके नाम पर बनाया गया ढांचा असल में मस्जिद ही नहीं था! बाबर एक समलैंगिक (homosexual), नशेड़ी, शराबी, और बाल उत्पीड़क (child molester) था! बाबरी मस्जिद असलियत में बाबर के पुरुष आशिक “बाबरी” के नाम पर था! यह सिद्ध हो गया है कि बाबरी मस्जिद कोई इबादतघर नहीं लेकिन समलैंगिकता और बाल उत्पीडन का प्रतीक जरूर थी

बाबरनामा के विभिन्न पृष्ठों से लिए गए निम्नलिखित अंश पढ़िए:
•   पृष्ठ १२०-१२१ पर बाबर लिखता है कि वह अपनी पत्नी में अधिक रूचि नहीं लेता था बल्कि वह तो बाबरी नाम के एक लड़के का दीवाना था. वह लिखता है कि उसने कभी किसी को इतना प्यार नहीं किया कि जितना दीवानापन उसे उस लड़के के लिए था. यहाँ तक कि वह उस लड़के पर शायरी भी करता था. उदाहरण के लिए- “मुझ सा दर्दीला, जुनूनी और बेइज्जत आशिक और कोई नहीं है. और मेरे आशिक जैसा बेदर्द और तड़पाने वाला भी कोई और नहीं है.”

•   बाबर लिखता है कि जब बाबरी उसके ‘करीब’ आता था तो बाबर इतना रोमांचित हो जाता था कि उसके मुंह से शब्द भी नहीं निकलते थे. इश्क के नशे और उत्तेजना में वह बाबरी को उसके प्यार के लिए धन्यवाद देने को भी मुंह नहीं खोल पता था.

•   एक बार बाबर अपने दोस्तों के साथ एक गली से गुजर रहा था तो अचानक उसका सामना बाबरी से हो गया! बाबर इससे इतना उत्तेजित हो गया कि बोलना बंद हो गया, यहाँ तक कि बाबरी के चेहरे पर नजर डालना भी नामुमकिन हो गया. वह लिखता है- “मैं अपने आशिक को देखकर शर्म से डूब जाता हूँ. मेरे दोस्तों की नजर मुझ पर टिकी होती है और मेरी किसी और पर.” स्पष्ट है की ये सब साथी मिलकर क्या गुल खिलाते थे!

•   बाबर लिखता है कि बाबरी के जूनून और चाह में वह बिना कुछ देखे पागलों की तरह नंगे सिर और नागे पाँव इधर उधर घूमता रहता था.

•   वह लिखता है- “मैं उत्तेजना और रोमांच से पागल हो जाता था. मुझे नहीं पता था कि आशिकों को यह सब सहना होता है. ना मैं तुमसे दूर जा सकता हूँ और न उत्तेजना की वजह से तुम्हारे पास ठहर सकता हूँ. ओ मेरे आशिक (पुरुष)! तुमने मुझे बिलकुल पागल बना दिया है”.

आप भी बाबरनामा को यहाँ पढ़ सकते हैं
http://www.archive.org/details/baburnama017152mbp

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