अफ़गानिस्तान
के बामियान इलाके में गौतम बुद्ध की दो विशाल प्रतिमाएँ हुआ करती थीं।
इनमें से बड़ी प्रतिमा की ऊँचाई 55 मीटर और छोटी की ऊँचाई 37 मीटर थी। बड़ी
प्रतिमा में बुद्ध वैरोकना मुद्रा व छोटी प्रतिमा में बुद्ध साक्यमुनी
मुद्रा में खड़े दिखते थे। यह दोनों विश्व में बुद्ध की खड़ी मुद्रा में बनी
सबसे विशाल प्रतिमाएँ थीं –जिन्हें बामियान घाटी में एक पहाड़ी को काटकर
बनाया गया था।
तालिबान के पागलपन के कारण आज हमें इन प्रतिमाओं के बारे में भूतकाल का प्रयोग करते हुए बात करनी पड़ती है।
तालिबान के पागलपन के कारण आज हमें इन प्रतिमाओं के बारे में भूतकाल का प्रयोग करते हुए बात करनी पड़ती है।
ऐसा माना जाता है कि यह प्रतिमाएँ कुषाणों द्वारा स्थानीय बौद्ध भिक्षुओं
के मार्गदर्शन में बनाई गईं थीं। छोटी वाली प्रतिमा सन 507 में और बड़ी वाली
सन 554 में निर्मित की गईं। यूनेस्को ने इन्हें विश्व धरोहर भी घोषित किया
हुआ था; लेकिन यह बात इन प्रतिमाओं को तालिबान द्वारा नष्ट किए जाने से
नहीं बचा सकीं।
अफ़गानिस्तान में धर्म गुरुओं ने पत्थर की इन प्रतिमाओं को इस्लाम के ख़िलाफ़ करार दे दिया था। हालांकि 1999 में मुल्ला मुहम्मद ओमार ने कहा था कि तालिबान इन प्रतिमाओं की रक्षा करेंगे क्योंकि इन्हें देखने आने वाले पर्यटकों से अफ़गानिस्तान को आय होती थी। लेकिन 2001 में तालिबान की सरकार ने प्रतिमाओं को नष्ट कर देने का निर्णय कर लिया। उस समय भारत ने तालिबान के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि भारतीय सरकार अपने खर्च पर इन प्रतिमाओं को भारत में स्थानांतरित कर सकती है जहाँ इन्हें पूरी मानव जाति के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। दुर्भाग्य से तालिबन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
2 मार्च 2001 को तालिबान ने इन प्रतिमाओं पर वायुयान-भेदी तोपों से प्रहार करना शुरु किया। आप इन प्रतिमाओं के आकार का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि कई दिन तक इस तरह के प्रहारों के होते रहने के बावज़ूद प्रतिमाएँ गिरी नहीं। सो, तालिबान ने प्रतिमाओं में तोपों के प्रहार के कारण बने छेदों में टैंक-भेदी सुरंगे लगा दीं और उनमें विस्फोट करके शांति के प्रतीक चिन्हों को नष्ट कर दिया।
6 मार्च 2001 को “द टाइम्स” पत्रिका में मुल्ला मुहम्मद ओमार ने कहा: “मुसलमानों को इन प्रतिमाओं के नष्ट होने पर गर्व करना चाहिए। इन्हें नष्ट करके हमनें अल्लाह की इबादत की है।”
चित्र में देखिये बड़े बुध की प्रतिमा नष्ट होने के पहले और बाद की
अफ़गानिस्तान में धर्म गुरुओं ने पत्थर की इन प्रतिमाओं को इस्लाम के ख़िलाफ़ करार दे दिया था। हालांकि 1999 में मुल्ला मुहम्मद ओमार ने कहा था कि तालिबान इन प्रतिमाओं की रक्षा करेंगे क्योंकि इन्हें देखने आने वाले पर्यटकों से अफ़गानिस्तान को आय होती थी। लेकिन 2001 में तालिबान की सरकार ने प्रतिमाओं को नष्ट कर देने का निर्णय कर लिया। उस समय भारत ने तालिबान के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि भारतीय सरकार अपने खर्च पर इन प्रतिमाओं को भारत में स्थानांतरित कर सकती है जहाँ इन्हें पूरी मानव जाति के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। दुर्भाग्य से तालिबन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
2 मार्च 2001 को तालिबान ने इन प्रतिमाओं पर वायुयान-भेदी तोपों से प्रहार करना शुरु किया। आप इन प्रतिमाओं के आकार का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि कई दिन तक इस तरह के प्रहारों के होते रहने के बावज़ूद प्रतिमाएँ गिरी नहीं। सो, तालिबान ने प्रतिमाओं में तोपों के प्रहार के कारण बने छेदों में टैंक-भेदी सुरंगे लगा दीं और उनमें विस्फोट करके शांति के प्रतीक चिन्हों को नष्ट कर दिया।
6 मार्च 2001 को “द टाइम्स” पत्रिका में मुल्ला मुहम्मद ओमार ने कहा: “मुसलमानों को इन प्रतिमाओं के नष्ट होने पर गर्व करना चाहिए। इन्हें नष्ट करके हमनें अल्लाह की इबादत की है।”
चित्र में देखिये बड़े बुध की प्रतिमा नष्ट होने के पहले और बाद की
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