यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम
‘यशोधरपुर’ था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के
शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मंदिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने
प्रायः शिवमंदिरों का निर्माण किया था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर
में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है।
राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मंदिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहां केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। वर्तमान कंबोडिया की उत्पत्ति ‘कंबुज’ नामक शब्द से मानी जाती है। कुछ विद्वान भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर बसने वाले कंबोजों का संबंध भी इस प्राचीन भारतीय उपनिवेश से बताते हैं।
नवीं शताब्दी ईसवी में जयवर्मा तृतीय कंबुज का राजा हुआ और उसी ने लगभग 860 ई. में अंग्कोरथोम (थोम का अर्थ ‘राजधानी’ है) नामक अपनी राजधानी की नींव डाली। राजधानी प्रायः 40 वर्षों तक बनती रही और 900 ई. के लगभग तैयार हुई। 19 वीं सदी के अंत में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने पांच दिनों की नौका यात्रा के बाद उस नगर और उसके खंडहरों का पुनरुद्धार किया। आज का अंग्कोरथोम एक विशाल नगर का खंडहर है। उसके चारों ओर 330 फुट चौड़ी खाई है, जो सदा जल से भरी रहती थी। नगर और खाई के बीच एक विशाल वर्गाकार प्राचीर नगर की रक्षा करती है।
प्राचीर में अनेक भव्य और विशाल महाद्वार बने हैं। महाद्वारों के ऊंचे शिखरों को त्रिशीर्ष दिग्गज अपने मस्तक पर उठाए खड़े हैं। विभिन्न द्वारों से पांच विभिन्न राजपथ नगर के मध्य तक पहुंचते हैं। नगर के ठीक मध्य में शिव का एक विशाल मंदिर है जिसके तीन भाग हैं। प्रत्येक भाग में एक ऊंचा शिखर है। मध्य शिखर की ऊंचाई लगभग 150 फुट है। इस ऊंचे शिखरों के चारों ओर अनेक छोटे-छोटे शिखर बने हैं, जो संख्या में लगभग 50 हैं। इन शिखरों के चारों ओर समाधिस्थ शिव की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर के गलियारों में तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं।
यहाँ के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की शृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। बालकांड की इन दो प्रमुख घटनाओं की प्रस्तुति के बाद विराध एवं कबंध वध का चित्रण हुआ है। अगले शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, बाली और सुग्रीव के द्वंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है। परवर्ती शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं। अंकोरवाट के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा यद्यपि अत्यधिक विरल और संक्षिप्त है, तथापि यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति आदिकाव्य की कथा के अनुरुप हुई है।
राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मंदिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहां केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। वर्तमान कंबोडिया की उत्पत्ति ‘कंबुज’ नामक शब्द से मानी जाती है। कुछ विद्वान भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर बसने वाले कंबोजों का संबंध भी इस प्राचीन भारतीय उपनिवेश से बताते हैं।
नवीं शताब्दी ईसवी में जयवर्मा तृतीय कंबुज का राजा हुआ और उसी ने लगभग 860 ई. में अंग्कोरथोम (थोम का अर्थ ‘राजधानी’ है) नामक अपनी राजधानी की नींव डाली। राजधानी प्रायः 40 वर्षों तक बनती रही और 900 ई. के लगभग तैयार हुई। 19 वीं सदी के अंत में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने पांच दिनों की नौका यात्रा के बाद उस नगर और उसके खंडहरों का पुनरुद्धार किया। आज का अंग्कोरथोम एक विशाल नगर का खंडहर है। उसके चारों ओर 330 फुट चौड़ी खाई है, जो सदा जल से भरी रहती थी। नगर और खाई के बीच एक विशाल वर्गाकार प्राचीर नगर की रक्षा करती है।
प्राचीर में अनेक भव्य और विशाल महाद्वार बने हैं। महाद्वारों के ऊंचे शिखरों को त्रिशीर्ष दिग्गज अपने मस्तक पर उठाए खड़े हैं। विभिन्न द्वारों से पांच विभिन्न राजपथ नगर के मध्य तक पहुंचते हैं। नगर के ठीक मध्य में शिव का एक विशाल मंदिर है जिसके तीन भाग हैं। प्रत्येक भाग में एक ऊंचा शिखर है। मध्य शिखर की ऊंचाई लगभग 150 फुट है। इस ऊंचे शिखरों के चारों ओर अनेक छोटे-छोटे शिखर बने हैं, जो संख्या में लगभग 50 हैं। इन शिखरों के चारों ओर समाधिस्थ शिव की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर के गलियारों में तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं।
यहाँ के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की शृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। बालकांड की इन दो प्रमुख घटनाओं की प्रस्तुति के बाद विराध एवं कबंध वध का चित्रण हुआ है। अगले शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, बाली और सुग्रीव के द्वंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है। परवर्ती शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं। अंकोरवाट के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा यद्यपि अत्यधिक विरल और संक्षिप्त है, तथापि यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति आदिकाव्य की कथा के अनुरुप हुई है।
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